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________________ है विशुद्ध आत्मबोध, आत्मरमण किसी चीज का ध्यान नहीं करना है, क्योंकि यदि तुम किसी विषय पर ध्यान कर रहे हो तो वह धारणा है। धारणा का अर्थ है कि किसी विषय पर एकाग्रता करनी है। ध्यान है मेडिटेशन, वहां कोई विषय नहीं रहता, हर चीज छूट जाती है, लेकिन तुम जागे हुए हो । विषय छूट चुके हैं, लेकिन तुम सो नहीं गए हो। तब एक गहन बोध होगा, कोई विषय नहीं होगा, तुम स्वयं में केंद्रित होओगे। लेकिन अभी भी 'मैं' की अनुभूति बची रहेगी। वह छाया की भांति मौजूद रहेगी। विषय गिर चुका, लेकिन विषयी अभी भी मौजूद है। तुम अब भी अनुभव करते हो कि तुम हो। यह अहंकार नहीं है। संस्कृत में हमारे पास दो शब्द हैं 'अहंकार और अस्मिता' अहंकार का अर्थ है 'मैं हूं।' और अस्मिता का अर्थ है हूं, मात्र हूं-पन कोई अहंकार न रहा, मात्र एक छाया बची है। तुम अब भी किसी न किसी तरह अनुभव करते हो कि तुम हो यह कोई विचार नहीं होता, क्योंकि अगर यह विचार हो, कि मैं हूं तब तो यह अहंकार है । ध्यान में अहंकार पूरी तरह खो जाता है, लेकिन एक हूं अनुभूति, तुम्हारे चारों ओर छाई रहती है-सुबह की धुंध की ध्यान अर्थात सुबह; सूर्य अभी उगा नहीं, धुंधलका है; अस्मिता, पन, एक छाया जैसी घटना, मात्र एक तरह तुम्हारे आस-पास छाई रहती है। हूं - – पन अब भी मौजूद है। तुम अभी भी पीछे लौट सकते हो। एक हलकी सी अशांति कोई बात कर रहा है और तुम सुनते हो - ध्यान खो गया; तुम वापस आ गए धारणा तक। यदि तुम केवल सुनते ही नहीं बल्कि तुमने उसके विषय में सोचना भी शुरू कर दिया है, तो धारणा भी खो चुकी है, तुम लौट आए हो प्रत्याहार तक। और यदि तुम न केवल सोचते हो, बल्कि तुमने तादात्म्य भी बना लिया है सोच-विचार के साथ, तो प्रत्याहार भी खो चुका है, तुम उतर आए हो प्राणायाम तक और यदि विचार इतना हावी हो गया है कि तुम्हारी श्वास की लय गड़बड़ा जाती है, तो प्राणायाम भी खो गया; तुम आ गए हो आसन पर । और यदि विचार और श्वास इतनी ज्यादा अस्तव्यस्त हैं कि शरीर कैंपने लगता है, बेचैन हो जाता है, तो आसन भी खो गया। वे सब आपस में जुड़े हुए हैं। तो कोई ध्यान तक पहुंच कर भी गिर सकता है। ध्यान सर्वाधिक खतरनाक बिंदु है संसार का, क्योंकि वह उच्चतम तल है जहां से कि तुम गिर सकते हो, और बहुत बुरी तरह से गिर सकते हो। भारत में हमारे पास एक शब्द है, योग भ्रष्ट जो व्यक्ति योग से गिर गया। यह शब्द बहुत ही अदभुत है। यह एक साथ समादर भी करता है और निंदा भी करता है। जब हम कहते हैं कि कोई योगी है तो वह बहुत बड़ा आदर है। जब हम कहते हैं कि कर्म योग- भ्रष्ट है, तो वह एक निंदा भी है- योग से गिरा हुआ। यह व्यक्ति अपने किसी पिछले जन्म में ध्यान तक पहुंच गया था, और फिर गिर गया! ध्यान में संभावना है अभी भी संसार में वापस लौट जाने की - अस्मिता के कारण, उस 'हूं – पन' के कारण। बीज अभी भी जिंदा है वह किसी भी क्षण प्रस्फुटित हो सकता है; इसलिए यात्रा अभी समाप्त
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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