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________________ मुक्ति देने की कोशिश करते हो बस तुम्हारी उपस्थिति ही एक मुक्तिदायी प्रभाव बन जाती है तो दूसरा है 'नियम' एक सुनिश्चित नियमन । फिर तीसरा है 'आसन'। और प्रत्येक चरण पहले आने वाले चरण से आता है : जब तुम्हारे जीवन में नियमितता होती है, केवल तभी तुम्हें आसन उपलब्ध होता है। कभी आसन के लिए प्रयोग करके देखना; बस प्रयास करना मौन बैठ जाने का। तुम नहीं बैठ सकते - शरीर तुम्हारे खिलाफ विद्रोह करने की कोशिश करता है। अचानक तुम यहां-वहां दर्द अनुभव करने लगते हो! टांगें मुर्दा होने लगती हैं। अचानक तुम शरीर के बहुत से हिस्सों में एक बेचैनी अनुभव करते हो। तुमने पहले कभी ऐसा महसूस नहीं किया था। ऐसा क्यों होता है कि मौन बैठने से ही ये सब समस्याएं उठ खड़ी होती हैं? तुम अनुभव करते हो कि चींटियां रंग रही हैं। आंख खोल कर देखो, और तुम पाओगे कि कहीं कोई चींटियां नहीं हैं, शरीर तुम्हें धोखा दे रहा है। शरीर राजी नहीं है अनुशासित होने के लिए शरीर बिगड़ चुका है। शरीर तुम्हारी नहीं सुनना चाहता। वह स्वयं अपना मालिक बन गया है। और तुम सदा उसका अनुसरण करते रहे हो । अब कुछ देर के लिए शांत बैठना करीब-करीब असंभव हो गया है। यदि तुम केवल शांत बैठने को कह दो तो लोग बहुत परेशान हो जाते हैं। यदि मैं किसी से शांत बैठने के लिए कहता हूं तो वह कहता है, 'बस शांत बैठना है, कुछ करना नहीं है?' जैसे कि 'करना' एक विक्षिप्तता हो गई है। कोई कहता है, 'कम से कम कोई मंत्र ही दे दें जिसे मैं भीतर जपता रहूं।' तुम्हें कोई व्यस्तता चाहिए। केवल मौन होकर बैठना कठिन मालूम पड़ता है और वही है सुंदरतम संभावना जो कि किसी मनुष्य को घट सकती है, बस बिना कुछ किए मौन बैठना । आसन का अर्थ है एक विश्रांत मुद्रा । तुम इतने हल्के हो जाते हो, तुम इतने आराम में होते हो कि शरीर को हिलाने-डुलाने की कोई जरूरत नहीं रहती। उस विश्राम के क्षण में, अचानक, तुम शरीर का अतिक्रमण कर जाते हो। शरीर तुम्हें नीचे लाने की कोशिश कर रहा होता है जब शरीर कहता है कि 'जरा देखो, बहुत सारी चींटियां रेंग रही हैं।' या तुम अचानक खुजलाने की एक जबरदस्त उत्तेजना अनुभव करते हो, बेचैन होने लगते हो। शरीर कह रहा होता है, 'इतने आगे मत जाओ। लौट आओ पीछे। कहां जा रहे हो तुम?' क्योंकि चेतना ऊर्ध्वगामी हो रही होती है, शरीर के तल से बहुत दूर जा रही होती है; शरीर विद्रोह करने लगता है। ऐसा पहले तुमने कभी किया नहीं। शरीर तुम्हारे लिए समस्याएं खड़ी करता है, क्योंकि एक बार समस्या खड़ी हो जाए, तो तुम्हें लौटना ही पड़ेगा। शरीर तुम्हारा ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है मेरी तरफ ध्यान दो।' वह पीड़ा निर्मित कर देगा। वह खुजलाहट निर्मित कर देगा; तुम्हें लगेगा कि खुजलाना जरूरी है। अचानक शरीर कोई साधारण चीज नहीं रह जाता; शरीर विद्रोह कर देता है। यह शरीर की राजनीति है। तुम्हें वापस बुलाया जा रहा है : 'इतने दूर
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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