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________________ मत जाओ, उलझे रहो। यहीं रहो। बंधे रहो शरीर से और धरती से।' तुम आकाश की ओर बढ़ रहे हो, और शरीर भयभीत होने लगता है। आसन केवल उसी व्यक्ति को घटित होता है, जो संयम का जीवन जीता है, नियमितता का जीवन जीता है; केवल तभी आसन संभव होता है। तब तुम शांत बैठ सकते हो, क्योंकि शरीर जानता है कि तुम अनुशासन में जीने वाले व्यक्ति हो। यदि तुम बैठना चाहते हो, तो तुम बैठोगे ही-तुम्हारे विरुद्ध कुछ भी नहीं किया जा सकता। शरीर कुछ-कुछ कहे जा सकता है.....। धीरे-धीरे वह शांत हो जाता है। कोई है नहीं सुनने के लिए। तो यह कोई दमन नहीं है; तुम शरीर का दमन नहीं कर रहे हो; उलटे शरीर कोशिश कर रहा है तुम्हारा दमन करने की! यह कोई दमन नहीं है। तुम शरीर को कुछ करने के लिए नहीं कह रहे हो; तुम बस विश्राम कर रहे हो। लेकिन शरीर का किसी विश्राम से परिचय नहीं है, क्योंकि तुमने कभी उसे विश्राम दिया नहीं है। तुम सदा बेचैन रहे हो।'आसन' शब्द का ही अर्थ है विश्राम, एक गहन विश्राम; और यदि तुम ऐसा कर सको, तो और बहुत सी बातें तुम्हारे लिए संभव हो जाएंगी। यदि शरीर शांत हो, तो तुम अपनी श्वास को नियमित कर सकते हो। अब तुम और ज्यादा गहरे उतर रहे हो, क्योंकि श्वास शरीर और आत्मा के बीच, शरीर और मन के बीच एक तम श्वास को नियमित कर सको–यही है प्राणायाम-तो अपने मन पर तुम्हारी मालकियत हो जाती है। क्या तुमने कभी ध्यान दिया है कि जब भी मन बदलता है, तो श्वास की लय तुरंत बदल जाती है? यदि तुम इसका उलटा करो-यदि तुम श्वास की लय बदल दो-तो मन को तुरंत ही बदलना पड़ता है। जब तुम क्रोधित होते हो तो तुम धीमी श्वास नहीं ले सकते; वरना तो क्रोध खो जाएगा। प्रयोग करके देखना। जब तुम क्रोधित अनुभव करते हो, तो तुम्हारी श्वास अराजक हो जाती है, अनियमित हो जाती है, वह सारी लय खो देती है, उद्विग्न, बेचैन हो जाती है। फिर वह एक समस्वरता नहीं रहती। अराजक हो जाती है; लय खो जाती है। एक काम करना. जब भी तुम्हें क्रोध आ रहा हो तो बस शांत हो जाना और श्वास को लय में चलने देना। अचानक तुम पाओगे कि क्रोध तिरोहित हो गया है। तुम्हारे शरीर की एक विशेष प्रकार की श्वास के बिना क्रोध नहीं हो सकता। जब तुम संभोग कर रहे होते हो तो श्वास बदल जाती है-बहुत अराजक हो जाती है। जब तुम कामवासना से भरे होते हो, तो श्वास बदल जाती है, बहुत अराजक हो जाती है। कामवासना में थोड़ी हिंसा है। कई बार प्रेमी एक-दूसरे को काट लेते हैं और एक-दूसरे को चोट पहुंचा देते हैं! और यदि तुम दो व्यक्तियों को संभोग करते हुए देखो, तो तुम्हें लगेगा कि किसी प्रकार का युद्ध चल रहा है। उसमें थोड़ी-बहुत हिंसा होती है। और दोनों अराजक श्वास ले रहे होते हैं; उनकी श्वास लयपूर्ण नहीं होती, समस्वरता में नहीं होती।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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