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________________ यदि तुमने परम शून्य को अनुभव कर लिया है, तो पूछने की जरूरत ही क्या है? कोई 'यदि' नहीं होता, अगर तुमने अनुभव कर लिया होता है। अगर तुम पूछते हो तो शायद तुमने कल्पना कर ली है के तमने शन्य की अवस्था का अनभव कर लिया है क्योंकि शन्य की अवस्था से कोई प्रश्न नहीं उठते। उठ नहीं सकते, कोई संभावना नहीं है। कौन उठाएगा प्रश्न शून्य की अवस्था में? एक बार तुम उस शून्य को, उस रिक्तता को जान लेते हो, तो फिर कोई चीज नहीं उठती। कि तुमने शून्य के तुमने जरूर कल्पना कर ली होगी। और ऐसा होता है : इससे पहले कि कोई उस अवस्था को उपलब्ध होता है, वह बहुत बार कल्पना कर लेता है-अपनी आकांक्षा के कारण। निरंतर मुझे सुनते-सुनते तुम एक आकांक्षा बना लेते हो. कि कैसे बुद्धत्व को उपलब्ध हों, कैसे सारी पीड़ा से मुक्ति मिले। वह आकांक्षा स्वप्न निर्मित कर देगी। यदि आकांक्षा बहुत गहरी है, तो इतने जीवंत सपने निर्मित कर देगी कि वे वास्तविक मालूम पड़ेंगे। वे ज्यादा वास्तविक मालूम होंगे साधारण वास्तविकता से, और तब तुम समझोगे कि तुमने अनुभव किया। नहीं। यदि शून्य का अनुभव होता है, तो सारे प्रश्न गिर जाते हैं-ऐसा नहीं है कि तुम उत्तर पा लेते हो। किसी प्रश्न का कभी कोई उत्तर नहीं मिलता। क्योंकि प्रश्न होते ही निरर्थक हैं। उनका उत्तर पाया नहीं जा सकता। सारे प्रश्न निरर्थक होते हैं। जब मैं ऐसा कहता हूं तो मेरा मतलब है : अगर कोई पूछे, 'लाल रंग की सुगंध कैसी होती है?' तो यह प्रश्न व्याकरण की दृष्टि से तो ठीक लगता है, लेकिन यह व्यर्थ है, क्योंकि लाल रंग या कोई भी रंग हो, उसका सुगंध से कोई संबंध नहीं है। अगर कोई पूछता है : 'लाल रंग की सुगंध कैसी होती है?' तो यह बात व्यर्थ है। सारे प्रश्न निरर्थक हैं; इसलिए उन्हें हल करने की कोई जरूरत नहीं है। एक बार तुम मौन हो जाते हो, परिपूर्ण मौन, तो तुम अचानक समझ लेते हो सारे प्रश्नों की व्यर्थता को-और सारी दार्शनिक धारणाओं की व्यर्थता को, क्योंकि सभी दर्शन इस धारणा पर निर्भर करते हैं कि प्रश्न उत्तर दिए जाने जैसे हैं। नहीं। तुम कल्पना कर सकते हो, जब तुम कल्पना कर लेते हो तब ऐसा ही होगा। 'मैंने परम शून्य केंद्र को अनुभव कर लिया है जहां से सारा अस्तित्व आता है, और साथ ही उस आनंद को भी जिसकी आप बात करते हैं। यदि मैं पूछू कि बुद्धत्व में छलांग लगाने के लिए मैं क्या करूं...?' लेकिन अब इसकी जरूरत क्या है? तुम कहते हो कि तुमने अनुभव कर लिया है शून्य केंद्र को। तुम कहते हो कि तुमने पा लिया है और अनुभव कर लिया है आनंद की अवस्था को। यही है बुद्धत्व। अब कोई भी छलांग इससे बाहर छलांग होगी। तो कृपा करके, छलांग मत लगाना। अब छलांग लगाना
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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