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________________ झूठ बोलना असंभव था वह जान जाएगी उसकी दृष्टि के सम्मुख नरोपा ने अपने को बिलकुल नग्न अनुभव किया, निर्वस्त्र, पारदर्शी वे आंखें उसके अंतस में एकदम गहरे झांक रही थीं, और झूठ बोलना असंभव था। उसने और किसी से कह दिया होता, 'निश्चित ही मैं समझता हूं भाव', लेकिन इस स्त्री से, इस भयंकर स्त्री से वह झूठ नहीं बोल सका; उसे सत्य ही कहना पड़ा। उसने कहा, 'ही, मैं शब्दों को समझता हूं।' वह स्त्री बहुत प्रसन्न हो गई वह नाचने लगी और हंसने लगी। यह सोच कर कि स्त्री इतनी खुश हो गई है और उसकी खुशी के कारण उसकी कुरूपता भी बदल गई थी; अब वह उतनी कुरूप न रही थी, एक सूक्ष्म सौंदर्य उसके भीतर से बाहर झलकने लगा था - तो यह सोच कर कि मैंने इसे इतना प्रसन्न कर दिया है तो क्यों न इसे थोड़ा और प्रसन्न कर दूं उसने कहा, और ही, मैं भाव भी समझता हूं।" उस स्त्री की हंसी रुक गई। उसका नृत्य थम गया। वह चीखने लगी और रोने लगी, और उसकी सारी कुरुपता लौट आई पहले से हजार गुना ज्यादा। - नरोपा ने कहा, 'क्यों? क्यों तुम रो रही हो? और पहले क्यों तुम हंस रही थीं और नाच रही थीं? वह स्त्री कहने लगी, मैं नाच रही थी और हंस रही थी और खुश थी, क्योंकि तुम्हारे जैसे महान विद्वान झूठ नहीं बोला था। लेकिन अब मैं चीख रही हूं और रो रही हूं क्योंकि तुमने मुझसे झूठ बोला। मैं जानती हूं - और जानते हो कि तुम भाव को नहीं समझते।' ने दृश्य विलीन हो गया और नरोपा रूपांतरित हो गया। उसने विश्वविद्यालय छोड़ दिया। उसने फिर कभी अपनी जिंदगी में कोई शास्त्र न छुआ। वह बिलकुल अज्ञानी हो गया वह समझ गया कि केवल शब्दों को समझ कर तुम किसे धोखा दे रहे हो! और केवल शब्दों को समझ समझ कर तुम बन गए हो एक कुरूप बूढी चुड़ैल । - ज्ञान कुरूप होता है। और यदि तुम विद्वानों के पास जाओ तो तुम पाओगे कि वे दुर्गंध से भरे हैंज्ञान की दुर्गंध से वे मुर्दा हैं। एक प्रज्ञावान व्यक्ति के पास एक बोधपूर्ण व्यक्ति के पास उसकी एक अपनी ताजगी होती है, एक 1 सुवासित जीवन होता है जो कि नितांत अलग होता है पंडित से, ज्ञान से भरे व्यक्ति से। जो भाव को समझता है वह सुंदर हो जाता है, जो केवल शब्द को ही समझता है वह कुरूप हो जाता है। और वह स्त्री कोई बाहर की नहीं थी : वह तो भीतर का एक प्रक्षेपण थी। वह नरोपा का ही एक हिस्सा था जो ज्ञान के द्वारा कुरूप हो गया था। मात्र इतनी समझ कि मैं भाव को नहीं समझता और सारी कुरूपता एक सुंदरता में बदल जाने वाली थी।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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