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________________ जो तुम्हें तुम्हारी नींद से जगा दे। अन्यथा तुम तो ऐसे ही चलते चले जा सकते हो। नींद मा होती है। अज्ञान मादक होता है, वह एक प्रकार का नशा है तुम्हें उससे बाहर आना है। मैं तुम से एक कहानी कहूंगा, जो मुझे सदा प्रीतिकर रही है। वह तिलोपा के शिष्य, सिद्ध नरोपा के विषय में है। नरोपा के अपने गुरु तिलोपा से मिलने के पहले की घटना है। उसके बुद्धत्व को उपलब्ध होने से पहले की घटना है। और यह बहुत जरूरी है प्रत्येक खोजी के लिए, सब के साथ ऐसा ही होगा। तो सवाल यह नहीं है कि ऐसा नरोपा के साथ हुआ या नहीं, लेकिन इस यात्रा पर ऐसा होना अनिवार्य है। जब तक ऐसा न घटे, बुद्धत्व संभव नहीं है। इसलिए मैं नहीं जानता कि ऐतिहासिक रूप से ऐसा हुआ या नहीं, लेकिन मनोवैज्ञानिक रूप से मैं निश्चित हूं एकदम सुनिश्चित हूं कि ऐसा हुआ, क्योंकि कोई भी इस अनुभव के बिना पार के जगत में गति नहीं कर सकता । नरोपा बहुत बड़ा विद्वान था, एक बड़ा पंडित था। कहानियां हैं कि वह एक महान उपकुलपति था एक बड़े विश्वविद्यालय का - दस हजार उसके विद्यार्थी थे। एक दिन वह बैठा हुआ था अपने विद्यार्थियों के बीच। उसके चारों ओर हजारों शास्त्र बिखरे पड़े थे - प्राचीन, अति प्राचीन, दुर्लभ शास्त्र। अचानक ही उसे झपकी लग गई - थका रहा होगा और उसे एक दृश्य दिखाई पड़ा। मैं इसे दृश्य कहता हूं स्वप्न नहीं कहता, क्योंकि यह कोई साधारण स्वप्न नहीं है। यह इतना अर्थपूर्ण है कि इसे स्वप्न कहना उचित न होगा यह दर्शन था। उसने एक बहुत की, कुरूप, भयंकर स्त्री देखी, चुड़ैल जैसी उसकी कुरूपता इतनी भयंकर थी कि वह नींद में कांपने लगा। वह बहुत घबरा गया। वह भाग जाना चाहता । था लेकिन भागे कहां? जाए कहा? वह पकड़ लिया गया, मानो कि की चुड़ैल द्वारा सम्मोहित हो गया - हो। उस स्त्री का शरीर घबराने वाला था, लेकिन उसकी आंखें चुंबकीय थीं। उसने पूछा, नरोपा, तुम क्या कर रहे हो?" और उसने कहा, 'मैं अध्ययन कर रहा हूं।' 'क्या अध्ययन कर रहे हो तुम?' की स्त्री ने पूछा। उसने कहा, 'दर्शन, धर्म, तत्व-मीमांसा, भाषा, व्याकरण, तर्कशास्त्र । ' उस की स्त्री ने फिर पूछा, 'क्या तुम समझते हो इन्हें?' नरोपा ने कहा, बिलकुल ही, मैं समझता हूं इन्हें ' उस स्त्री ने फिर पूछा, तुम शब्दों को समझते हो या कि अनुभव को?' यह बात पहली बार पूछी गई थी। नरोपा से जीवन में हजारों प्रश्न पूछे गए थे। वह एक बड़ा शिक्षक था हजारों विद्यार्थी सदा ही पूछते रहे थे, जिज्ञासा करते रहे थे लेकिन किसी ने यह नहीं पूछा था : 'तुम शब्दों को समझते हो या कि भाव को ?' और उस स्त्री की आंखें इतनी गहरे देखने वाली थीं कि
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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