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________________ की । नरोपा तलाश में निकल पड़ा, क्योंकि अब शास्त्र काम न देंगे। अब जरूरत है किसी जीवंत सदगुरु फिर लंबी यात्राओं के बाद उसे तिलोपा मिले। तिलोपा को भी इस व्यक्ति की तलाश थी, क्योंकि जब तुम्हारे पास कुछ होता है, तो तुम उसे बांटना चाहते हो; एक करुणा पैदा होती है। करुणा बौद्ध शब्दावली है। इसके लिए अंग्रेजी शब्द कम्पैशन एकदम वही भाव व्यक्त नहीं करता कर नहीं सकता। करुणा शब्द बहुत ही अर्थपूर्ण है। यह उसी संस्कृत मूल से आता है जिससे कि किया शब्द आता है। क्रिया और करुणा - वे दोनों आते हैं एक ही मूल धातु 'कृ' से। बौद्ध शब्द करुणा का अर्थ है 'सक्रिय करुणा ।' और यही अंतर है सहानुभूति और करुणा के बीच, सहानुभूति में कुछ करने की कोई जरूरत नहीं होती- तुम बस अपनी सहानुभूति प्रकट कर देते हो और बात खतम हो जाती है। करुणा सक्रिय होती है; तुम करते हो कुछ तुम्हें कुछ करना ही पड़ता है। तुम मात्र सहानुभूति में कैसे जी सकते हो? सहानुभूति तो बहुत उथली बहुत ठंडी मालूम पड़ेगी। करुणा में ऊष्मा होती है। करुणा का अर्थ ही है कि वह सक्रिय होती है। जब कोई व्यक्ति ज्ञान को उपलब्ध होता है, तो करुणा पैदा होती है। तिलोपा ज्ञान को उपलब्ध हो गए थे। उनका साक्षात्कार हुआ था सत्य से; और अब करुणा उमग आई थी। और वे उस व्यक्ति - की खोज में थे जो लेने को तैयार हो क्योंकि सत्य के अनुभव को तुम उन पर नहीं थोप सकते जो कुछ समझेंगे ही नहीं। एक संवेदनशील हृदय की, एक स्त्रैण हृदय की जरूरत होती है। शिष्य को स्त्री जैसा होना होता है, क्योंकि गुरु को उंडेलना है और शिष्य को उसे स्वीकार करना है। तो वे दोनों मिले और तिलोपा ने कहा, 'नरोपा, अब मैं वह सब कहूंगा जिसे कहने की मैं प्रतीक्षा रहा हूं। मैं तुम्हें सब कुछ कहूंगा, नरोपा। तुम आ गए हो; अब मैं स्वयं को निर्धार कर सकता हूं।' नरोपा को जो दिखा, वह दृश्य बहुत अर्थपूर्ण है। वह दर्शन जरूरी है। जब तक तुम अनुभव न कर लो कि ज्ञान व्यर्थ है, तब तक तुम प्रज्ञा की तलाश कभी करोगे ही नहीं तुम झूठे सिक्के ही लिए रहोगे यह सोच कर कि यही है सच्चा खजाना । - तुम्हें सजग होना है कि ज्ञान नकली सिक्का है वह जानना नहीं है, वह बोध नहीं है। अधिक से अधिक वह बौद्धिक है - शब्द समझ में आ गए हैं लेकिन बोध चूक गया है। एक बार तुम समझ लेते हो, इसे तो तुम उतार फेंकोगे अपना सारा ज्ञान और तुम निकल पड़ोगे किसी ऐसे व्यक्ति की खोज में जो कि जानता है, क्योंकि जो जानता है, केवल उसी के साथ हृदय से हृदय का, प्राणों से प्राणों का संवाद संभव होता है। लेकिन शिष्य यदि पहले से ही ज्ञान से भरा है तो संवाद असंभव है, क्योंकि ज्ञान एक दीवार बन जाएगा।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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