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________________ तो विकास है : जो तम्हारे पास है उसे छोड़ते जाना उसके लिए जो कि संभव ही तभी होता है जब तुम खाली होते हो, जब तुम्हारे पास कुछ नहीं होता है। पतंजलि की सारी कला यही है कि कैसे उस अवस्था को उपलब्ध हो जाओ जहां तुम स्वेच्छापूर्वक मर सको, प्रसन्नतापूर्वक, बिना किसी प्रतिरोध के समर्पण कर सको। ये सूत्र तैयारी हैं, तैयारी हैं मरने के लिए और तैयारी हैं विराट जीवन के लिए। स्थिर सुखम् आसनम्। स्थिर और सुखपूर्वक बैठना आसन है। पतंजलि के योग को बहुत गलत समझा गया है, उसकी बहुत गलत व्याख्या हुई है। पतंजलि कोई व्यायाम नहीं सिखा रहे हैं, लेकिन योग ऐसा मालूम पड़ता है जैसे वह शरीर का व्यायाम मात्र हो। पतंजलि शरीर के दुश्मन नहीं हैं। वे तुम्हें शरीर को तोड़ना-मरोड़ना नहीं सिखा रहे हैं। वे तुम्हें शरीर का सौंदर्य सिखा रहे हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि एक सुंदर शरीर में ही एक सुंदर मन हो सकता है; और केवल संदर मन में ही सुंदर आत्मा संभव है; और केवल संदर आत्मा में ही परमात्मा उतर सकता है। एक एक कदम सौंदर्य में गहरे उतरना होता है। शरीर के सौंदर्य, शरीर के प्रसाद को ही वे आसन कहते हैं। वे कोई मैसोचिस्ट नहीं हैं। वे तम्हें अपने शरीर को सताना नहीं सिखा रहे हैं। वे शरीर के जरा भी विरुद्ध नहीं हैं। वे कैसे हो सकते हैं शरीर के विरुद्ध? वे जानते हैं कि शरीर ही बुनियाद है। वे जानते हैं कि अगर तुम शरीर को चक जाते हो, यदि तम शरीर को प्रशिक्षित नहीं करते, तो और ऊंचा प्रशिक्षण संभव न होगा। शरीर एक वाय-यंत्र की भाति है। उसके तार ठीक कसे होने चाहिए; केवल तभी उससे अदभुत संगीत पैदा होगा। यदि वाय-यंत्र ही ठीक स्थिति और ठीक व्यवस्था में नहीं है, तो कैसे तुम कल्पना कर सकते हो कि उससे मधुर संगीत उठेगा त्र केवल शोरगुल ही होगा। शरीर एक वीणा है। 'स्थिर सुखम् आसनम्। आसन को स्थिर और सुखद होना चाहिए। तो कभी अपने शरीर को तोड्ने -मरोड़ने की कोशिश मत करना, और कभी उन आसनों के लिए कोशिश मत करना जो सुखद नहीं हैं। पश्चिम के लोगों के लिए जमीन पर बैठना, पद्यासन में बैठना कठिन है, उनके शरीर इसके लिए प्रशिक्षित नहीं हैं। तो इस बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। पतंजलि कोई भी आसन तुम पर जबरदस्ती थोपना नहीं चाहते। पूरब में लोग जन्म से ही जमीन पर बैठते हैं, छोटे-छोटे बच्चे
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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