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________________ जमीन पर बैठते हैं। पश्चिम में, सर्द मुल्कों में कुर्सियां चाहिए; जमीन बहुत ठंडी होती है। लेकिन इस बारे में चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है। यदि तुम पतंजलि की व्याख्या पर ध्यान दो कि आसन क्या है, तो तुम समझ जाओगे. उसे स्थिर और आरामदेह होना चाहिए। यदि तुम कुर्सी में स्थिर और आराम से बैठ सकते हो, तो बिलकुल ठीक है-पद्यासन में बैठने का प्रयत्न जरूरी नहीं है और व्यर्थ ही शरीर को इसके लिए सताने की जरूरत नहीं है। असल में, यदि पश्चिम का व्यक्ति पदासन में बैठने की कोशिश करे तो उसके शरीर को अभ्यास करने में छह महीने लगते हैं; और वह परेशान हो जाता है। कोई जरूरत नहीं है इसकी। पतंजलि किसी तरह तुम्हें फुसला नहीं रहे हैं किसी तरह का कोई जोर नहीं डाल रहे हैं तुम पर-शरीर को सताने के लिए। तुम जबरदस्ती बैठ सकते हो किसी कठिन आसन में, लेकिन तब पतंजलि के अनुसार यह आसन न होगा। आसन ऐसा होना चाहिए कि तुम अपने शरीर को भूल सको। आरामदेह होने का मतलब क्या है? जब तुम भूल जाते हो अपने शरीर को, तब तुम आराम में होते हो। जब तुम्हें बार-बार याद आती है शरीर की, तब तुम आराम में नहीं हो। तो चाहे तुम कुर्सी पर बैठो चाहे जमीन पर बैठो, सवाल उसका नहीं है। आराम में रहो, क्योंकि यदि तुम शारीरिक रूप से आराम में नहीं हो, तो तुम दूसरी धन्यताओं की आकांक्षा नहीं कर सकते जो ज्यादा गहरी पर्तों से संबंधित हैं; यदि पहली पर्त चूक जाती है, तो दूसरी सब पर्ते बंद रहती हैं। यदि तुम सच में ही प्रसन्न और आनंदित होना चाहते हो, तो एकदम प्रथम से ही आनंदित होना प्रारंभ करना। जो व्यक्ति भीतर के आनंद की तलाश में है उसके लिए शरीर का आराम एक मूलभूत आवश्यकता है। 'स्थिर और सुखपूर्वक बैठना आसन है।' और जब भी आसन सुखद होता है तो वह स्थिर होगा ही। यदि आसन आरामदेह न हो तो तुम बेचैनी अनुभव करते हो। यदि आसन आरामदेह न हो तो तुम हिलते-डुलते रहते हो। यदि आसन सचमुच आरामदेह है, तो क्या जरूरत है अशांत होने की और बेचैन होने की-और बार-बार हिलनेडुलने की? और ध्यान रहे, जो आसन तुम्हारे लिए आरामदेह है, हो सकता है कि वह तुम्हारे पड़ोसी के लिए आरामदेह न हो, तो कृपया अपना आसन किसी अन्य व्यक्ति को मत सिखाने लगना। प्रत्येक व्यक्ति अनूठा है। जो चीज तुम्हारे लिए सुखद हो सकती है शायद वह दूसरे के लिए सुखद न हो। प्रत्येक व्यक्ति अनूठा है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर अनूठी आत्मा है। तुम्हारे अंगूठे की छाप तक अनूठी है, बेजोड़ है। तुम संसार भर में कोई दूसरा आदमी नहीं खोज सकते जिसके अंगूठे का निशान बिलकुल तुम्हारे जैसा हो। और न केवल आज. तुम पूरे पिछले इतिहास में ऐसा व्यक्ति नहीं खोज सकते जिसके अंगूठे का निशान तुम्हारे जैसा हो। और जो जानते हैं, वे कहते हैं, भविष्य में भी ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होगा जिसके अंगूठे का निशान तुम्हारे जैसा हो। अंगूठे का निशान कोई खास
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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