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________________ केवल स्वार्थी व्यक्ति ही हो सकता है निस्वार्थी। जब तुम्हारे पास आनंद होता है तो तुम उसे बांट सकते हो; जब तुम्हारे पास ही आनंद नहीं है, तो कैसे तुम बांट सकते हो? पहली तो बात, बांटने के लिए व्यक्ति के पास आनंद होना चाहिए। स्वार्थरहित व्यक्ति सदा गंभीर होता है, गहरे में बीमार होता है, व्यथा में जीता है। वह चूक गया है अपना जीवन। और ध्यान रहे, जब भी तुम अपने जीवन को चूक जाते हो तो तुम विध्वंसक हो जाते हो। जब भी कोई व्यक्ति पीड़ा में जीता है, तो वह नष्ट करना चाहता है, तोड़ना चाहता है। पीड़ा विध्वंसक होती है; प्रसन्नता सृजनात्मक होती है। केवल एक ही सृजनात्मकता है और वह आती है आनंद से, प्रफुल्लता से, आह्लाद से। जब तुम आनंदित होते हो, तब तुम कुछ सृजन करना चाहते हो-बच्चों के लिए कोई खिलौना, या कोई कविता, या कोई चित्र-कोई भी चीज। जब भी तुम बहुत प्रसन्न होते हो जीवन में, तो कैसे उसे अभिव्यक्त करोगे? तुम कुछ सृजन करते हो-कुछ भी। लेकिन जब तुम दुखी होते हो, पीड़ित होते हो, तो तुम चीजों को तोड़ना चाहते हो, मिटाना चाहते हो। तुम राजनीतिज्ञ होना चाहते हो, तुम सैनिक होना चाहते हो तुम कोई ऐसी स्थिति बना देना चाहते हो जिसमें कि तुम विध्वंस कर सको। इसीलिए सदा धरती पर कहीं न कहीं युद्ध चलता रहता है। यह एक बड़ी बीमारी है। और सारे राजनीतिज्ञ बातें करते हैं शांति की। वे तैयारी करते हैं युद्ध की और बातें करते हैं शांति की! असल में वे कहते हैं, 'हम शांति के लिए ही युद्ध की तैयारी कर रहे हैं।' बिलकुल असंगत बात है। यदि तुम तैयारी कर रहे हो युद्ध की, तो कैसे शांति हो सकती है? शांति बनाए रखने के लिए व्यक्ति को शांति की तैयारी करनी चाहिए। इसीलिए सारे संसार में नई पीढ़ी एक बड़ा खतरा बन गई है व्यवस्था के लिए। उसे केवल आनंदित होने में रस है। उन्हें रस है प्रेम में, उन्हें रस है ध्यान में, उन्हें रस है संगीत में, नृत्य में...| संसार भर में राजनीतिज्ञ बड़े चौकन्ने हो गए हैं। नई पीढ़ी को राजनीति में कोई रस नहीं है-चाहे वह दक्षिणपंथी हो या वामपंथी। नहीं, उन्हें जरा भी रस नहीं है। वे कम्युनिस्ट नहीं हैं; वे किसी भी वाद से संबंधित नहीं हैं। एक सुखी व्यक्ति अपने से संबंधित होता है। क्यों वह संबंधित होगा किसी संस्था से? वह तो दुखी व्यक्ति का ढंग है : कि किसी संस्था से जुड़ जाना, कि किसी भीड़ में सम्मिलित हो जाना। क्योंकि उसकी स्वयं के भीतर कोई जड़ें नहीं होती, वह अपने से जुड़ा नहीं होता और यह बात उसे बहुत बेचैन करती है : उसे किसी से जुड़ना चाहिए-तो वह वैकल्पिक संबंध निर्मित कर लेता है। वह सदस्य बन जाता है किसी राजनैतिक पार्टी का, किसी क्रांतिकारी पार्टी का, या किसी और संस्था काकिसी धर्म का। अब उसे लगता है कि वह कहीं संबंधित है, जुड़ा हुआ है : एक भीड़ है जिसका कि वह अंग है।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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