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________________ हर व्यक्ति को स्वार्थी होने की शिक्षा दो, उसी में से निःस्वार्थ आता है। निःस्वार्थ अंततः स्वार्थ ही है । शुरुआत में वह निःस्वार्थ जैसा लगता है, लेकिन अंततः वह तुम्हें ही सुखी करता है और सुख बढ़ता जाता है. जितने व्यक्ति तुम्हारे आस-पास सुखी होते हैं, उतना ही सुख तुम पर बरसने लगता है। तुम परम सुखी हो सकते हो। लेकिन अपने को कभी मत भूलना। तुम्हें अपने को छोड़ना सिखाया जाता रहा है। राजनीतिज्ञ, पंडित पुरोहित यही सिखाते आए हैं, क्योंकि संसार में राजनीतिज्ञों और पंडित-पुरोहितो के होने का यही एकमात्र उपाय है। यदि तुम दुखी हो, तो पंडित - पुरोहित की जरूरत है। यदि तुम परेशान हो, दुखी हो, तो जरूरत है राजनीतिज्ञों की । यदि तुम उच्छृंखल हो, तो शासक चाहिए । अगर तुम बीमार हो, केवल तभी चिकित्सक चाहिए तो राजनीतिज्ञ चाहते हैं कि तुम अव्यवस्थित रहो; अन्यथा वे किस पर लादेंगे व्यवस्था? तुम्हारी अव्यवस्था के कारण वे शासक बन जाते हैं; और वे तुम्हें निःस्वार्थी होना सिखाते हैं। वे तुम्हें सिखाते हैं. कुर्बान हो जाओ देश पर, ईश्वर पर धर्म पर इस्लाम पर हिंदुत्व पर, कुरान पर, गीता पर, बाइबिल पर - कोई भी नाम काम दे देगा, कोई भी शब्द चलेगा - लेकिन बलिदान कर दो स्वयं को यदि तुम बलिवेदी पर चढ़ जाओ, तो पुरोहित खुश होता है, राजनीतिज्ञ खुश होता है। पंडित - पुरोहित और राजनीतिज्ञ एक गहरी साजिश में जीते हैं-अनजाने, शायद उन्हें होश भी नहीं है कि वे क्या कर रहे हैं, लेकिन वे तुम्हें सुखी नहीं देखना चाहते। जब वे देखते हैं कि तुम सुखी हो रहे हो, तो वे चौकन्ने हो जाते हैं। तब तुम उनके लिए, उनके समाज के लिए, उनके व्यवस्थित संसार के लिए एक खतरा बन जाते हो तुम खतरनाक हो जाते हो सुखी व्यक्ति संसार का सबसे ज्यादा खतरनाक व्यक्ति होता है वह विद्रोही हो सकता है, क्योंकि सुखी व्यक्ति मुक्त व्यक्ति होता है। और सुखी व्यक्ति परवाह नहीं करता युद्धों की, वियतनाम की इजरायल की सुखी व्यक्ति को ये बातें पागलपन लगती है, मूढ़तापूर्ण लगती हैं। एक सुखी व्यक्ति इतना प्रसन्न होता है कि वह चाहता है कि तुम उसे उसकी प्रसन्नता में अकेला छोड़ दो। वह अपने एकांत के जगत में जीना चाहता है। वह फूलों और काव्य और संगीत के बीच जीना चाहता है। वह क्यों फिक्र करेगा युद्ध पर जाने की, मरने-मारने की? वह क्यों दूसरों की हत्या करना या आत्महत्या करना चाहेगा? केवल स्वार्थहीन लोग ऐसा कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें कोई अनुभव नहीं है कि कितना सुख संभव है। वैसा कोई अनुभव नहीं होता उनका : उन्हें पता नहीं कि होने का आनंद क्या है, कि उत्सवपूर्ण जीवन क्या है। उन्होंने कभी नृत्य नहीं किया। उन्होंने कभी जीवन को नहीं जाना। उन्होंने कभी अज्ञात को स्पर्श नहीं किया; वे झलकें आती हैं गहन प्रसन्नता से, गहन तृप्ति से, गहन संतोष से स्वार्थरहित व्यक्ति उखड़ा हुआ, केंद्ररहित होता है। वह गहन पागलपन में होता है। वह प्रकृति के विरुद्ध है वह स्वस्थ और समय नहीं हो सकता। वह जीवन की स्वभाव की अस्तित्व की धार के विरुद्ध लड़ रहा है - वह कोशिश कर रहा है निःस्वार्थी होने की। वह हो नहीं सकता निःस्वार्थी, , क्योंकि
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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