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________________ स्वार्थी होने का अर्थ क्या है? पहली मूलभूत बात है : आत्म-केंद्रित होना। दूसरी मूलभूत बात है : सदा अपनी प्रसन्नता की खोज में रहना। यदि तुम आत्म-केंद्रित हो तो तुम कुछ भी करो, तुम रहोगे स्वार्थी ही। तुम सेवा कर सकते हो लोगों की, लेकिन तुम सेवा इसलिए करोगे क्योंकि तुम्हें इसमें सुख मिलता है, क्योंकि ऐसा करने में तुम्हें रस है, ऐसा करने में तुम प्रसन्नता और आनंद अनुभव करते हो। तुम्हें लगता है कि ऐसा करना चाहिए। तुम कोई कर्तव्य नहीं पूरा कर रहे हो। तुम मनुष्यता की सेवा नहीं कर रहे हो। तुम कोई शहीद नहीं हो; तुम कोई कुर्बानी नहीं कर रहे हो। ये सब व्यर्थ की बातें हैं। तुम तो बस प्रसन्न हो अपने होने के इस ढंग में। यह बात तुम्हें अच्छी लगती है। तुम अस्पताल जाते हो और वहां रोगियों की सेवा करते हो, या तुम गरीबों के पास बैठते हो और उनकी मदद करते हो। लेकिन यह तुम्हारे प्रेम की अभिव्यक्ति है। इस तरह तुम विकसित होते हो। कहीं गहरे में तुम आनंद और शांति अनुभव करते हो, तुम आह्लादित होते हो स्वयं के प्रति। आत्म-केंद्रित व्यक्ति सदा अपना सुख खोज रहा होता है। और यही इसका सौंदर्य है कि जितना ज्यादा तुम अपना सुख खोजते हो, उतनी ज्यादा तुम दूसरों की मदद करोगे सुखी होने में। क्योंकि वही एकमात्र ढंग है संसार में सुखी होने का। अगर तुम्हारे आस-पास के व्यक्ति दुखी हैं, तो तुम सुखी नहीं हो सकते, क्योंकि व्यक्ति कोई अलग- थलग द्वीप नहीं है। वह हिस्सा है बड़े विशाल महाद्वीप का। अगर तुम सुखी होना चाहते हो, तो जो लोग तुम्हारे आस-पास हैं, तुम्हें उनकी मदद करनी होगी सुखी होने में। केवल तभी-और केवल तभी-तुम सुखी हो सकते हो। तुम्हें अपने चारों ओर सुख का वातावरण निर्मित करना होता है। यदि हर कोई दुखी है, तो कैसे तुम सुखी हो सकते हो? तुम पर उनका प्रभाव पड़ेगा ही। तुम कोई पत्थर तो नहीं हो। तुम एक संवेदनशील, बहुत संवेदनशील प्राणी हो। यदि तुम्हारे आस-पास के व्यक्ति दुखी हैं, तो उनका दुख तुम्हें प्रभावित करेगा ही। दुख उतना ही संक्रामक है जितना कि कोई और रोग। आनंद भी उतना ही है। यदि तम दूसरों की मदद करते हो सुखी होने में, तो अंततः तम अपनी ही मदद करते हो सुखी होने में। वह व्यक्ति जो अपने सुख में बहुत उत्सुक होता है, वह सदा दूसरे के सुख में भी उत्सुक होता है लेकिन लक्ष्य दूसरा नहीं होता। गहरे में उसे स्वयं में ही रुचि होती है, इसीलिए वह मदद करता है। यदि संसार में सभी को स्वार्थी होने की शिक्षा दी जाए, तो सारा संसार सुखी हो जाएगा। दुख की कोई संभावना नहीं रह जाएगी। यदि तुम स्वस्थ होना चाहते हो, तो तुम बीमार लोगों के बीच स्वस्थ नहीं रह सकते हो। कैसे रह सकते हो तुम स्वस्थ? यह बात असंभव है। यह नियम के विरुद्ध है। तुम्हें दूसरों की मदद करनी होगी स्वस्थ होने में। तुम्हारा स्वास्थ्य स्वस्थ लोगों के बीच ही संभव है।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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