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________________ सौ व्यक्ति दुखी थे, तो तुम्हारे दुखी होने से एक सौ एक हो जाते हैं। दुखी होकर तुम कैसे किसी की मदद कर सकते हो? लेकिन यह एक सूक्ष्म अहंकार होता है जो अच्छा महसूस करता है : 'मैं कितना दयालु हूं कितना करुणावान हूं। मैं दूसरे कठोर व्यक्तियों की तरह नहीं हूं, पत्थर जैसा नहीं हूं; मेरे पास हृदय है। जब मैं गुजरता हूं सड़कों से तो मैं दुखी हो जाता हूं, क्योंकि मैं इतनी गरीबी देखता हूं चारों तरफ।' यह एक पवित्र अहंकार है-बहुत पवित्र मालूम होता है, लेकिन कहीं गहरे में बहुत ही अपवित्र होता है। लेकिन अगर तुम्हें गुजरना ही है इससे, तो गुजरो। मैं क्या कर सकता हूं? तुम यहां अपने अंतस की खोज के लिए हो। यह अवसर मत गंवा देना। भिखारी तो सदा रहेंगे; तुम बाद में भी दुखी हो सकते हो। वे इतनी जल्दी संसार से विदा नहीं हो जाएंगे-डरो मत। तुम उन्हें सदा पाओगे। अगर और कहीं नहीं, तो भारत में तो तुम उनको सदा ही पाओगे। चिंता मत करो. तुम सदा भारत आ सकते हो और दुखी हो सकते हो; इसके लिए जल्दी करने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन मैं यहां नहीं रहूंगा सदा, यह स्मरण रखना। अगली बार जब तुम आओगे, तो भिखारी रहेंगे-मैं शायद न रहूं। तो यदि तुम जरा सा भी होश रखते हो, तो मेरे साथ होने के अवसर का उपयोग कर लेना। इसे गंवा मत देना किसी मूढ़ता में। लेकिन अगर तुम्हें लगता है कि तुम इसे नहीं भूल सकते, तो केवल एक ही रास्ता है कि भूल जाओ मुझे और बैठो भिखारियों के साथ और दुखी होओ-जितना हो सकते हो दुखी होओ। शायद इसी तरह तुम इसके बाहर आ सकते हो। तुम्हें मदद की जरूरत है, गुजरो इससे। मैं प्रतीक्षा करूंगा। जब तुम्हारे लिए यह बात खतम हो जाए, तो आ जाना चौथा प्रश्न: आप एक ही साथ हम सब लोगों पर कैसे काम करते हैं? इसका राज क्या है? इसमें राज जैसा कुछ भी नहीं है। क्योंकि मैं तुम सबको प्रेम करता हूं तुम बहुत नहीं रहते। मेरा प्रेम तुम्हारे चारों ओर छाया रहता है; उसमें तुम एक हो जाते हो। असल में मैं एक-एक व्यक्ति पर काम नहीं कर रहा हूं अन्यथा तो बहुत कठिन हो जाए। जब मैं तुमको देखता हूं तो मैं तुम्हें अलगअलग नहीं देखता। मैं तुम्हें संपूर्ण के हिस्से की भांति देखता हूं। मेरे प्रेम की छांव में तुम एक हो। जिस क्षण तुम समर्पण करते हो, तुम अहंकार की तरह मिट जाते हो-तुम एक विराट घटना का
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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