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________________ हिस्सा हो जाते हो। तुम हो बूंद की भांति. जब तुम समर्पण करते हो, तब तुम सागर का हिस्सा हो जाते हो। मैं काम करता हूं सागर पर-बूदों पर नहीं। इसमें रहस्य जैसा कुछ नहीं है। और असल में यह कहना कि मैं काम करता हं ठीक नहीं है। यह मेरे होने का ढंग है। यह कोई काम नहीं है; यह केवल मेरे होने का ढंग है। यह एक 'होना है। इससे अन्यथा मैं हो नहीं सकता। एक बार तुम धड़कने देते हो अपने हृदय को मेरे साथ, तो वह काम करने लगता है। असल में यह बात तुम्हारे निर्णय की है। अगर तुम चाहते हो कि मैं कुछ करूं, तो बस उसे होने दो। मैं तो कर ही रहा हूं काम। शायद तुम पूरी दुनिया में पच्चीस हजार हो-या शायद पच्चीस लाख, उससे कुछ अंतर न पड़ेगा। मेरा काम वही रहता है। अगर पूरा संसार भी संन्यास ले ले, तो भी मेरा काम वही रहता है। यह ऐसा ही है जैसे कि एक दीया जल रहा हो कमरे में. कोई व्यक्ति भीतर आता है तो एक को प्रकाश मिलता है; फिर दस व्यक्ति आ जाते हैं कमरे में, तो ऐसा नहीं होता कि दीए पर बहुत बोझ हो जाता है। जब वहा कोई न था तो भी दीए से प्रकाश झर रहा था उस नितांत मौन और एकांत में। कोई एक प्रवेश करता है, वह देख सकता है। अब दस भीतर आएं, वे देख सकते हैं। लाखों भीतर आएं, और वे देख सकते हैं। प्रकाश वहा बरस रहा है, जब वहा कोई नहीं होता है, तो भी वह बरस रहा होता अगर यहां कोई न हो, तो भी मैं इसी तरह काम करता रहंगा। यह गिनती का प्रश्न नहीं है, और इसमें कोई राज नहीं है। और असल में यह काम नहीं है; यह प्रेम है। जब तुम प्रेम की अवस्था को उपलब्ध हो जाते हो, तो तुम प्रकाश से भर जाते हो। वह प्रकाश तुमसे बरसता रहता है, एक ज्योति जलती रहती है : जो भी अपनी आंखें खोलने को तैयार हो, वह उस प्रकाश का लाभ ले सकता है। पांचवां प्रश्न: अगर मैने आपसे संन्यास न लिया होता तो मैने आपको छोड़ दिया होता और मेरे पहले गुरु भी शायद अब मुझे स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि मैने उनको छोड़ दिया और अपनी श्रद्धा खोई। बहरहाल मैं आप में श्रद्धा नहीं खोना चाहता। अब मैं बुद्धत्व की भी आकांक्षा नहीं करता हूं। अगर आप मुझे अपने चरणों में बांधे रख सके तो मैं सोचता हूं कि आपने गुरु के रूप में अपना कर्तव्य पूरा किया। इसमें बहुत सी बातें समझने जैसी हैं; उनसे मदद मिलेगी।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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