SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रेम काव्य है। विवाह है साधारण गद्य, अच्छा है साधारण लेन-देन के लिए; अगर तुम्हें सब्जी खरीदनी है तो अच्छा है; लेकिन यदि तुम आकाश की तरफ देख रहे हो और बातचीत कर रहे हो परमात्मा से तो पर्याप्त नहीं है तो जरूरत है काव्य की। साधारणतया तो जीवन गदय जैसा होता है। धार्मिक जीवन काव्यमय होता है : एक लय होती है, एक छंद होता है, उसमें कुछ अज्ञात, अपरिचित रहस्य उतर आता है। मैं विवाह के पक्ष में नहीं हूं। और मुझे गलत मत समझ लेना-मैं यह नहीं कह रहा हूं कि अविवाहित रह कर साथ-साथ रहो। वह सब औपचारिकता पूरी कर लो जो समाज चाहता है, लेकिन उसे ही सब कुछ मत मान लेना। वह तो ऊपर-ऊपर की बात है; उसके पार जाना है। और अगर मुझे लगता है कि तुम्हें विवाह की जरूरत है मैं तुमसे विवाह करने को कहता हूं। असल में यदि मुझे लगता है कि तुम्हें नरक के अनुभव से गुजरने की जरूरत है तो मैं तुम्हें जाने देता हूं-मैं तुम्हें और धक्का दे देता हूं –कि नरक से गुजर ही लो, क्योंकि उसी की जरूरत है तुम्हें, और उससे गुजर कर ही तुम विकसित होओगे। तीसरा प्रश्न : मुझे यहां आए अब चार हफ्ते हो गए हैं और मैं अभी भी सड़क पर दिखती दीनता-दरिद्रता को नहीं झेल पाता उस ओर से आख बंद कर लेने के सिवाय कोई उपाय नहीं बचता। तो जितना मैं आश्रम में खुलता हूं जब मैं साइकिल से घर लौटता हूं तो उतना ही बंद हो जाता हूं। कृपया इस विषय में कुछ कहें। म पहले ही कह चुका हूं और मैंने पहले ही इस प्रश्न का उत्तर दे दिया है। अगर तुम यहां किसी भीतर की खोज के लिए हो, तो कृपा करके कुछ दिनों के लिए-जब तक तुम यहां मेरे साथ होंसंसार को भूल जाओ। लेकिन ऐसा लगता है कि यह कठिन है। तो अब केवल एक ही रास्ता बचता है-दुखी हो जाओ, जितना दुखी हो सको हो जाओ। जाओ और बैठ जाओ सड़क पर भिखारियों के साथ और रोओ और चीखो और दुखी होओ-और खतम करो बात। अगर तुम नरक चाहते हो, तो गुजरो नरक से। यह एक बड़ा अहंकारी दृष्टिकोण है। तुम सोच रहे होओगे कि यह करुणा है। लेकिन यह नासमझी है क्योंकि तुम्हारे दुखी हो जाने से ही सड़क के किसी भिखारी को मदद नहीं मिल जाती है। अगर
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy