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________________ तो उसमें एक सौंदर्य होता है-बहुत सहज, निर्दोष सौंदर्य होता है। और जब तुम किसी के साथ अजनबी की तरह रहते हो...। और हर कोई अजनबी ही है। तुम किसी व्यक्ति को नहीं जान सकते। सब जानना बहुत ऊपर-ऊपर होगा; व्यक्ति बहुत विराट घटना है। व्यक्ति एक असीम रहस्य है। इसीलिए हम कहते हैं कि हर एक र परमात्मा है। कैसे तम जान सकते हो परमात्मा को? ज्यादा से ज्यादा तम परिधि को छ सकते हो। और जितना ज्यादा तुम जानते हो किसी व्यक्ति को, उतने ही ज्यादा विनम्र तुम हो जाओगे-उतना ही ज्यादा तुम अनुभव करोगे कि रहस्य छूट-छूट जाता है। असल में रहस्य और गहरा हो जाता है। जितना ज्यादा तुम जानते हो, उतना ही तुम अनुभव करते हो कि तुम कम जानते हो। अगर प्रेमी सच में ही प्रेम में हैं, तो वे कभी एक-दूसरे को नहीं कहेंगे कि जान लिया; क्योंकि केवल चीजों को जाना जा सकता है-व्यक्तियों को नहीं। केवल चीजें ही जानकारी का हिस्सा बन सकती हैं। व्यक्ति तो एक रहस्य ही रहता है-गहनतम रहस्य। तो विवाह के ऊपर उठो। यह कोई कानून की, औपचारिकता की, परिवार की बात नहीं है-वह सब कोरी बकवास है। इसकी जरूरत है क्योंकि समाज में रहते हो, लेकिन उसके ऊपर उठो; उसी पर समाप्त मत हो जाना। और किसी व्यक्ति पर मालकियत करने की कोशिश मत करना। ऐसा मत सोचने लगना कि दूसरा व्यक्ति पति है-तब तुमने व्यक्ति के सौंदर्य को एक असुंदर चीज में बदल दिया : पति। कभी मत कहना कि यह स्त्री तुम्हारी पत्नी है-फिर वह अजनबी नहीं रह जाती, तुमने उसे बहत भौतिक तल तक, चीजों के बहुत साधारण तल तक उतार लिया होता है। पति और पत्नी सांसारिक संबंध हैं। प्रेमियों का संबंध दूसरे जगत का संबंध है। तो दूसरे की पवित्रता और दिव्यता को याद रखना। कभी अतिक्रमण मत करना उसका, कभी दखल मत देना उसमें। प्रेमी सदा झिझकता है। वह तुम्हें सदा एक खुला आकाश देता है स्वयं होने के लिए। वह कृतज्ञ होता है; वह कभी अनभव नहीं करता कि तुम उसके अधिकार में हो। वह अनुगृहीत होता है कि कभी-कभी किन्हीं अदभुत घड़ियों में तुम उसे आने देते हो अपने आत्यंतिक मंदिर में और अपने साथ होने देते हो। वह सदा अनुगृहीत होता है। लेकिन पति-पत्नी तो सदा शिकायतो से भरे होते हैं, कभी अनुगृहीत नहीं होते-सदा लड़ते -झगड़ते रहते हैं। और अगर तुम देखो उनकी लड़ाई, वह कुरूप होती है। प्रेम का पूरा सौंदर्य ही खो जाता है। केवल क्षुद्र बातें ही रह जाती हैं. पत्नी है, पति है, बच्चे हैं, और रोज – रोज की कलह है। वह अनजाना, अपरिचित अब स्पर्श नहीं करता। इसीलिए तुम पाओगे कि एक धूल सी जम जाती है-पत्नी थकी-थकी दिखाई पड़ती है; पति बेजान दिखाई देता है। जीवन ने खो दिया होता है अर्थ, जीवंतता और उल्लास। अब जीवन एक काव्य न रहा; वह एक बोझ बन चुका होता है।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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