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________________ तुम्हारा अपना खजाना एक सुनिश्चित भाव-दशा में ही पाया जा सकता है। और वह भाव-दशा तभी उपलब्ध होती है, जब तुम ईर्ष्यारहित होते हो, जब तुम इसकी फिक्र नहीं कर रहे होते कि दूसरों के पास क्या है। तुम बंद कर लेते हो अपनी आंखें, संसार कोई महत्व नहीं रखता; और की दौड़ अब कुछ पर्थ नहीं रखती : तब अंतस उदघाटित होता है। और दो तरह के लोग होते हैं. एक वे, जो रुचि रखते हैं ज्यादा इकट्ठा करने में; और दूसरे वे, जिन्हें रस है ज्यादा होने में। अगर तुम्हें और-और इकट्ठा करने में रस है-इकट्ठा करने का विषय चाहे कुछ भी हो, उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता-तुम धन इकट्ठा किए जा सकते हो, तुम ज्ञान इकट्ठा किए जा सकते हो, तुम मान-सम्मान इकट्ठा किए जा सकते हो, तुम कुछ भी इकट्ठा किए जा सकते हो, लेकिन यदि तुम्हें इकट्ठा करने में रस है, तो तुम चूक जाओगे। क्योंकि इकट्ठा करने के इस निरंतर प्रयास की कोई जरूरत नहीं है, तुम्हारे पास भीतर मौजूद ही है खजाना। 'जब योगी निश्चित रूप से अस्तेय में प्रतिष्ठित हो जाता है, तब आंतरिक समदधियां स्वयं उदित होती हैं।' ब्रह्मचर्यप्रतिष्ठाया वीर्यलाभः / जब योगी निश्चल रूप से ब्रह्मचर्य में प्रतिष्ठित हो जाता है तब तेजस्विता की उपलब्धि होती है। संस्कृत से अनुवाद करना करीब-करीब असंभव ही है। सदियों –सदियों के परिष्कार से, सदियोंसदियों की आध्यात्मिक खोज से, ध्यान से संस्कृत ने एक सुगंध उपलब्ध की है जो किसी और भाषा के पास नहीं है। उदाहरण के लिए, इस 'ब्रह्मचर्य' शब्द का अनुवाद करना असंभव है। शाब्दिक रूप से तो इसका अर्थ है : ब्रह्म जैसी चर्या, परमात्मा जैसा आचरण, परमात्मा की भांति होना। लेकिन साधारणतया इसका अनवाद किया जाता है : 'काम-निरोध।' और दोनों में बहत बड़ा अंतर हैब्रह्मचर्य केवल काम-निरोध नहीं है। इसे ठीक से समझ लेना. तुम कामवासना पर रोक लगा सकते हो और हो सकता है तुम ब्रह्मचर्य को उपलब्ध न होओ, लेकिन यदि तम ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो जाते हो तो तुम्हारी कामवासना अपने आप खो जाती है। काम-निरोध दमन है, तुम दमन करते हो अपनी काम-ऊर्जा का। और वह दमन कभी रूपांतरण की दिशा में नहीं ले जाता। लेकिन ऐसी विधियां हैं जिनके द्वारा तुम्हारा ब्रह्मरूप तुम्हारे सामने उदघाटित हो जाता है : अचानक कामवासना खो जाती है। ऐसा नहीं कि उसका दमन हो जाता है। उस भगवत्ता में ऊर्जा बिलकुल अलग ही रूप ले लेती है। तुम ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो जाते हो बिना किसी प्रयास के; अगर कोई प्रयास हो तो दमन हो जाएगा। कामवासना का खो जाना परिणाम है ब्रह्मचर्य का। तो कैसे हों ब्रह्मचर्य को उपलब्ध?
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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