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________________ 'जब योगी निश्चल रूप से ब्रह्मचर्य में प्रतिष्ठित हो जाता है...।' अगर तुम निश्चित रूप से प्रतिष्ठित हो अहिंसा में, अगर तुम निश्चित रूप से प्रतिष्ठित हो सत्य में, अगर तुम निश्चित रूप से प्रतिष्ठित हो अचौर्य में, तो बहुत सहज होता है परमात्मा की भांति होना, ब्रह्म जैसी चर्या। तुम ही परमात्मा होते हो। जब तुम दूसरों को कोई चोट नहीं पहुंचा रहे होते हो, तुम कोई जंजीरें नहीं बना रहे होते हो; तुम अपने बंधन काट रहे होते हो, तुम मुक्त हो रहे होते हो, जब तुम कोई दिखावा करने की कोशिश नहीं कर रहे होते हो और तुम प्रामाणिक होते हो, जब तुम अपने को मुखौटों में छिपाने की कोशिश नहीं कर रहे होते हो-तुम सच्चे होते हो अपने आत्यंतिक प्राणों तक-तो काम-ऊर्जा रूपांतरित होने लगती है। क्या तुमने खयाल किया कि जब तुम हिंसक होते हो तो ज्यादा काम-ऊर्जा अनुभव होती है? असल में पति-पत्नी भली-भाति जानते हैं कि जब वे लड़ते-झगड़ते हैं, तो उस रात म कर सकते हैं। क्यों होता है ऐसा? हिंसा कामवासना पैदा करती है। जितना ज्यादा हिंसक होता है व्यक्ति, उतना ज्यादा वह कामुक होता है। अहिंसा काम-ऊर्जा को रूपांतरित करती है। यदि तुम कोशिश में हो कि किसी को चोट न पहुंचे, अगर तुम्हें किसी को चोट पहुंचाने में कोई रस नहीं है, अगर तुम में गहन प्रेम है, स्नेह है, करुणा है दूसरों के लिए, तो तुम पाओगे कि तुम्हारी कामवासना कम हो रही है। कामवासना एक खास वातावरण में ही रह सकती है. क्रोध, हिंसा, घृणा, ईर्ष्या, प्रतियोगिता) महत्वाकांक्षा-ये तमाम बातें मौजूद हों तो इनके साथ कामवासना बनी रहती है। अगर तुम दूसरी बातो को छोड़ देते हो, तो धीरे-धीरे तुम पाओगे कि कामवासना ने -बल खो दिया है; वह स्नेह बन , प्रेम बन गई है, करुणा बन गई है-वही ऊर्जा ऊपर उठने लगी, ज्यादा ऊंचे तल पर पहुंचने लगी। कामवासना के दमन से कोई ब्रह्मचर्य में प्रतिष्ठित नहीं हो सकता। अगर तुम जाओ और देखो उन लोगों को जिन्होंने अपनी कामवासना को दबाया है, तो तुम पाओगे कि वे ज्यादा क्रोधी हो गए हैं, वे ज्यादा हिंसक हो गए हैं। इसीलिए मनुष्य का सारा इतिहास बताता है कि सेनाओं को जबरदस्ती कामवासना के दमन में रखा गया। क्योंकि जब सैनिकों को जबरदस्ती कामवासना के दमन में रखा जाता है, तो वे ज्यादा हिंसक हो जाते हैं : वह ऊर्जा जो कामवासना में निर्मुक्त हो सकती थी, वह निर्मुक्त नहीं होती। असल में मनस्विदों की खोज से पता चला है कि हिंसा और दमित काम-ऊर्जा के बीच एक गहरा संबंध है। सारे हिंसात्मक हथियार-चाकू या खंजर या तलवार-भोंके जाते हैं किसी के शरीर में. यह ऐसा ही है जैसे काम-ऊर्जा प्रविष्ट होती है स्त्री में। दूसरे का शरीर स्त्री बन जाता है और तुम्हारे हथियार लैंगिक प्रतीक बन जाते हैं। अब चाहे यह मशीनगन से निकली गोली हो और तुम दूर खड़े हो, लेकिन बात वही है। जब भी तुम्हारी काम-ऊर्जा का दमन होता है, तो तुम दूसरे तरीके और साधन खोज लेते हो कि दूसरों के शरीर में कैसे प्रविष्ट हों।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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