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________________ वह नाम लड़कियों जैसा लगता है। कृष्ण जरूर जैनियों को लड़कियों जैसे लगते होंगे-उनके वस्त्र पहनने का ढंग, उनका नृत्य, उनका चेहरा, लंबे बाल! यह तो अच्छा है कि वे पुराने दिनों में हुए। अगर वे अभी हुए होते तो किसी सरकार ने काट दिए होते उनके बाल। लंबे बालों और बांसुरी के साथ तो वे हिप्पी लगते। तो वह लड़का कहने लगा, 'यह नाम। लड़कियों जैसा है। मुझे कुछ और कहें, कोई और नाम दें।' अगर जैन आए कृष्ण से मिलने, तो वह नहीं पहचान पाएगा। अगर हिंदू मिले महावीर से, तो वह नहीं पहचान पाएगा। विश्वास, धारणाएं, ये सब तुम्हारे आस-पास इकट्ठी हो गई धूल हैं -तुम देख नहीं सकते ठीक से, तुम्हारी दृष्टि खो गई है। अगर तुम मुसलमान हो तो तुम गीता नहीं पढ़ सकते। अगर तुम हिंदू हो तो तुम कुरान नहीं पढ़ सकते-असंभव है क्योंकि सदा तुम्हारा हिंदू होना बीच में आ जाएगा। गांधी, जो कि कहा करते थे कि सभी धर्म समान हैं, उन्होंने भी कुरान के वही उद्धरण चुने जो बिलकुल अनुवाद लगते हैं-गीता के अनुवाद मालूम पड़ते हैं; बाकी उद्धरण उन्होंने छोड़ दिए। उन्होंने गीता पढ़ी और कुरान पढ़ी और वे अंश चुन लिए जो उनकी विचारधारा के साथ मेल खाते थे और फिर वे कहते हैं कि सब ठीक है। लेकिन उन्होंने असली अंश, जो विपरीत पड़ते हैं गीता के, जो कुरान को करान बनाते हैं, वे उन्होंने छोड़ दिए! विश्वासों, विचारों, धारणाओं, सिद्धांतो से लदा मन पंगु होता है-गति के लिए मुक्त नहीं होता-बंद होता है, बंधन में होता है, गुलाम होता है। और बुद्ध को देखने के लिए, जानने के लिए तुम्हें एक उन्मुक्त मन चाहिए-स्व निर्मल मन चाहिए-कोई बंधन नहीं, कोई पूर्वाग्रह नहीं; कोई विश्वास-धारणाएं उसे घेरे हुए न हों। यह सूत्र बिलकुल ठीक है : 'जब योगी सुनिश्चित रूप से अहिंसा में प्रतिष्ठित हो जाता है, तब जो उसके सान्निध्य में आते हैं, वे सब शत्रुता छोड़ देते हैं।' अचानक एक प्रेम उमड़ आता है-बिना किसी प्रकट कारण के। बस उनकी उपस्थिति काम करती है, उनके होने का ढंग ही ऐसा होता है कि तुम उनके ऊर्जा- क्षेत्र में प्रवेश करते हो, और तुम फिर वही नहीं रह जाते। इसीलिए ऐसे व्यक्तियों के सामने साधारण लोगों को तो सदा ऐसा ही लगता है कि वे किसी भांति सम्मोहित हो जाते हैं। कोई सम्मोहित नहीं कर रहा होता है तम्हें, तो भी सम्मोहन घटता है। उनकी उपस्थिति ही शीतल होती है। उनकी उपस्थिति तुम्हें शात कर देती है; तुम्हारा भीतरी शोरगुल बंद हो जाता है उनकी मौजूदगी में। तुम अपने को पहले जैसा अनुभव नहीं करते; तुम अपने को बदला हुआ अनुभव करते हो। जब तुम वापस लौट आते हो अपने घर, फिर तुम वैसे ही हो जाते हो, पहले जैसे ही। तब तुम पीछे विचार करते हो कि तुम सम्मोहित हो गए थे या कि क्या हुआ था?
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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