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________________ यदि तुम शांत और मौन हो और तुम बुद्ध के पास आते हो, तो अचानक तुम अनुभव करोगे कि तुम्हारे भीतर एक बड़ा परिवर्तन घट रहा है। तुम कोई शत्रुता अनुभव नहीं कर सकते। इसीलिए तो बुद्ध के पास आने में एक डर लगता है। उनसे दूर रह कर तुम शत्रुता का भाव रख सकते हो। यदि तुम उनके सामने आ जाते हो, तो बात कठिन हो जाती है-बहुत कठिन हो जाती है। अगर तम उनके सान्निध्य में रहो, तो अगर तम पागल भी हो, तो संभावना यही है कि उनकी मौजूदगी एक चुंबकीय शक्ति बन सकती है; संभावना यही है कि तुम अपने पागलपन के बावजूद परिवर्तित हो जाओ, रूपांतरित हो जाओ। इसीलिए लोग सदा बुद्ध पुरुषों से बचते रहे हैं-महावीर, पतंजलि, जीसस या लाओत्सु से बचते रहे हैं। वे उनके करीब नहीं आते। वे उनसे संबंधित अफवाहें इकट्ठी करते रहते हैं और उन अफवाहों में विश्वास करने लगते हैं, लेकिन वे पास नहीं आएंगे। वे यह देखने नहीं आएंगे कि क्या हो रहा है। और फिर जब वे आते हैं, तो उन्होंने इतना कूड़ा-कचरा इकट्ठा कर लिया होता है, इतनी ज्यादा गंदगी घिर चुकी होती है उनके आस-पास, कि वे पहले से ही मुर्दा होते हैं। उनके इतने पूर्वाग्रह होते हैं कि उनका दर्पण अब काम ही नहीं करता। उनका दर्पण धूल से ढंका होता है। निश्चित ही एक दर्पण प्रतिबिंबित करता है, लेकिन यदि वह धूल से ढंका हो तो तुम उसमें देखते रहो पर तुम्हारा चेहरा प्रतिबिंबित न होगा। पशु, पेड़, पक्षी-उन्होंने भी महसूस किया। ऐसा कहा जाता है कि जब बुद्ध बुद्धत्व को उपलब्ध हुए तो बिना मौसम के फूल खिल उठे। और ऐसा केवल बुद्ध के साथ ही नहीं हुआ; ऐसा बहुत बार हुआ है। यह कोई कपोल-कल्पना नहीं है। वृक्ष इतना आह्लादित हो गया...! इसीलिए बौद्ध सुरक्षित रखे हुए हैं उस वृक्ष को, बोधि-वृक्ष को, जिसके नीचे बुद्ध बुद्धत्व को उपलब्ध हुए। कुछ तरंगें उसने-वह साक्षी रहा है संसार की महानतम घटना का। केवल एक वही साक्षी बचा है। उसके पास असली इतिहास है, कि उस रात क्या घटित हुआ जब बुद्ध बुद्धत्व को उपलब्ध हुए। अब वैज्ञानिक कहते हैं कि बोधि-वृक्ष संसार का सर्वाधिक बुद्धिमान वृक्ष है। उसमें कुछ ऐसे रसायन हैं जो बुद्धि के लिए नितांत आवश्यक हैं, जिनके बिना बुद्धि का विकास नहीं हो सकता है। दूसरे अनेक वृक्ष हैं, लेकिन बोधि-वृक्ष के समान नहीं हैं। उसमें उन रासायनिक तत्वों की प्रचुर मात्रा है जो मस्तिष्क को बुद्धिमान बनाते हैं। शायद वह संसार का सर्वाधिक बुद्धिमान वृक्ष है। वह साक्षी रहा है बुद्ध के दूसरे ही आयाम में खिल उठने का। उसने अस्तित्व के उच्चतम शिखर-क्षण को जाना है। लेकिन मनुष्य का दर्पण धूल से ढंक गया है-विश्वासो की धूल, विचारों की धूल, सिद्धांतो की धूल। अभी दो-तीन दिन पहले एक परिवार ने संन्यास लिया। परिवार के छोटे लड़के ने भी संन्यास लिया। मैंने उसे सर्वाधिक सुंदर नामों में से एक नाम दिया-स्वामी कृष्ण भारती। लेकिन वह बोला, 'नहीं, यह तो लड़कियों जैसा नाम है।' कृष्ण! वह परिवार जैन है; वे कृष्ण के प्रति कोई भाव अनुभव नहीं करते।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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