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________________ कि जेलर कहां है और सारे नियम टूट गए हों और हर कोई अपनी जान बचा कर भाग रहा हो तो उस क्षण में अगर कैदी जरा भी सजग हो तो वह बड़ी आसानी से भाग सकता है; यदि वह बिलकुल मूर्ख है, केवल तभी वह इस अवसर को चूकेगा। जब समाज उथल-पुथल में होता है और हर चीज संकट में होती है, तो एक अराजकता फैल जाती है। इस समय यदि तुम चाहो, तो निकल सकते हो कैद से। यह बहुत आसान है, क्योंकि कोई तुम्हारे पीछे नहीं है। तुम अकेले हो। परिस्थिति ऐसी है कि हर कोई अपनी फिक्र कर रहा होता है-तुम्हारी तरफ कोई नहीं देख रहा होता। यही है घड़ी। चूकना मत इस घड़ी को। बहुत संकट की घड़ियों में लगभग सदा ही बहुत लोगों को बुद्धत्व घटा है। जब समाज बहुत व्यवस्थित होता है और करीब-करीब असंभव ही होता है विद्रोह करना, अतिक्रमण करना, नियमों का अनुसरण न करना, तो बुद्धत्व ज्यादा कठिन हो जाता है क्योंकि बुद्धत्व है स्वतंत्रता, बुद्धत्व है परम स्वच्छंदता। वस्तुत: वह है समाज से हटना और एक व्यक्ति बनना। समाज पसंद नहीं करता व्यक्तियों को वह पसंद करता है यंत्र-मानवों को जो लगते तो हैं बिलकुल व्यक्तियों की भांति, लेकिन व्यक्ति होते नहीं। समाज प्रामाणिक व्यक्ति को पसंद नहीं करता है। उसको पसंद आते हैं मुखौटे, चालबाज, पाखंडी, लेकिन प्रामाणिक व्यक्ति पसंद नहीं आते हैं क्योंकि प्रामाणिक व्यक्ति तो सदा एक झंझट होता है। एक प्रामाणिक व्यक्ति सदा मुक्त होता है। तुम जबरदस्ती उस पर चीजें आरोपित नहीं कर सकते, तुम उसे कैदी नहीं बना सकते, तुम उसे गुलाम नहीं बना सकते। वह अपना जीवन गंवाना पसंद करेगा, लेकिन वह अपनी स्वतंत्रता खोना पसंद नहीं करेगा। स्वतंत्रता उसके लिए जीवन से भी ज्यादा कीमती है। स्वतंत्रता का मल्य उसके लिए परम है। इसीलिए भारत में हमने परम अवस्था को कहा है-मोक्ष, निर्वाण। उसका अर्थ है : मुक्ति, आत्यंतिक मुक्ति, परम मुक्ति। तो जब भी समाज में उथल-पुथल होती है और हर कोई अपनी फिक्र में होता है-स्थिति ही ऐसी होती है तो बच निकलना। उस घड़ी कारागृह के द्वार खुल जाते हैं, दीवारों में सधे हो जाती हैं, पहरेदारों का कहीं पता नहीं होता-तम आसानी से भाग सकते हो। पच्चीस सौ साल पहले यही स्थिति थी बुद्ध के समय। ऐसा सदा वर्तुल में चलता है। पच्चीस सौ साल में एक वर्तुल पूरा होता है। जैसे एक वर्तुल पूरा होता है एक वर्ष में फिर गर्मियां आ जाती हैं, एक वर्ष का वर्तुल और गर्मियां लौट आती हैं-वैसे ही पच्चीस सौ साल का एक बड़ा वर्तुल होता है। हर बार पच्चीस सौ साल बाद पुराने आधार गिरते हैं; समाज को नए आधार बनाने होते हैं। सारा भवन व्यर्थ हो जाता है, उसे गिरा देना होता है। फिर आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सारे व्यवस्था-तंत्र अस्तव्यस्त हो जाते हैं। नए का जन्म निकट होता है; एक प्रसव-पीड़ा होती है।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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