SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्न हैं और तुम पूछते नहीं, तुम झिझक अनुभव करते हो, तो उससे कुछ फायदा नहीं। तब फिर बेहतर है पूछ लेना और बात खतम कर देना। ऐसा नहीं है कि पूछने से तुम्हें उत्तर मिल जाएंगे-किसी के पास उत्तर नहीं है, किसी के पास कभी था भी नहीं, किसी के पास कभी होगा भी नहीं। उत्तर असंभव है, क्योंकि जीवन एक रहस्य है। उसे लझाया नहीं जा सकता। जितना ज्यादा तम उसे सलझाते हो, उतना ही तम पाते हो कि असंभव है उसे सुलझाना। लेकिन प्रश्न पूछने से, धीरे-धीरे, तुम प्रश्नों की व्यर्थता के प्रति सजग हो जाते हो। फिर एक दिन सजगता के किसी क्षण में, चेतना के किसी बोधपूर्ण पल में, तुम प्रश्नों के पार चले जाते हो। जैसे कि सांप बाहर आ जाता है पुरानी केंचुली से-पुरानी केंचुली पीछे छूट जाती है; सांप सरक जाता है। एक दिन तुम्हारा चैतन्य आगे सरक जाता है और प्रश्नों की वह पुरानी केंचुली पीछे छूट जाती है। अचानक तुम नए होते हो और कुंआरे होते हो-तुम उपलब्ध हो जाते हो। तुम बुद्ध हो जाते हो। बुद्ध-चेतना वह चेतना नहीं होती जिसके पास सारे उत्तर होते हैं, बुद्ध-चेतना वह चेतना है जिसके पास कोई प्रश्न नहीं होते। दूसरा प्रश्न : ऐसा कहा गया है कि बड़े तनावपूर्ण समय में- सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक उथल-पुथल के समय में– विराट शुभ संभव होता है। क्या यह सूत्र इसी घटना की तरफ इंगित करता है जिसका कि हमें यहां पूना में आपके सान्निध्य में अनुभव मिल रहा है? हा संकट की घड़ी बहुत कीमती घड़ी है। जब सब चीजें व्यवस्थित होती हैं और कहीं कोई संकट नहीं होता, तो चीजें मर जाती हैं। जब कुछ बदल नहीं रहा होता और पुराने की पकड़ मजबूत होती है, तो करीब-करीब असंभव ही होता है स्वयं को बदलना। जब हर चीज अस्तव्यस्त होती है, कोई चीज स्थायी नहीं होती, कोई चीज सुरक्षित नहीं होती, कोई नहीं जानता कि अगले पल क्या होगा-ऐसे अराजक समय में तुम स्वतंत्र होते हो, तुम रूपांतरित हो सकते हो, तुम उपलब्ध हो सकते हो अपनी अंतस सत्ता के आत्यंतिक केंद्र को। यह जेल जैसा ही है : जब हर चीज सुव्यवस्थित होती है तो किसी कैदी के लिए उससे बाहर आना, जेल से भाग निकलना करीब-करीब असंभव ही होता है। लेकिन जरा सोचो भूचाल आया हो और हर चीज अव्यवस्थित हो गई हो और किसी को पता न हो कि पहरेदार कहां हैं और किसी को पता न हो
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy