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________________ यहां पूना में आपके साथ मेरा जीवन बिना मेरे किसी प्रयास के बहुत अधिक समृद्ध हो गया है। इसके लिए मैं बहुत गहन रूप से अनुगृहीत हूं लेकिन यह अदभुत औषधि केवल मुट्ठी भर लोगों के लिए ही क्यों उपलब्ध है जब कि सारा संसार मर रहा है? यह सदा से ही, सदियों-सदियों से एक महत्वपूर्ण प्रश्न रहा है। बुद्ध पुरुष होते हैं; वे सब लुटाते हैं जो कि वे लुटा सकते हैं, अपने अस्तित्व को बांटने को तैयार रहते हैं, लेकिन लगता है किसी को जरूरत ही नहीं है! और सबको जरूरत है। हर व्यक्ति बीमार है, और बुद्ध पुरुष मौजूद हैं, औषधि सामने है, लेकिन लगता है औषधि में किसी को कोई रुचि ही नहीं है। तो जरूर कोई कारण होगा। यह मेरे देखने में आया है कि सुख में रुचि लेना बहुत कठिन बात है, स्वास्थ्य में रुचि लेना अत्यंत कठिन बात है। लोगों की एक विकृत रुचि होती है रुग्णता के लिए और लोगों का एक रुग्ण मोह होता है दुख के साथ। इसीलिए तुम सदा तैयार रहते हो दुखी होने के लिए। किसी तैयारी की कोई जरूरत नहीं होती, कोई पतंजलि नहीं चाहिए कोई आठ चरण नहीं चाहिए दुखी होने के लिए। हर कोई तैयार होता है छलांग लगा देने को। जहां तक दुखी होने का प्रश्न है, हर कोई लाओत्सु का अनुसरण करता है और कोई कभी नहीं पूछता कि कैसे! मेरे पास कोई नहीं आता और पूछता कि दुखी कैसे हों? हर कोई जानता है। तुम्हें दुखी होना किसी ने नहीं सिखाया है-किसी ने नहीं, बिलकुल भी नहीं। तुम यह बात अपने आप जान लेते हो। तुम तो पहले से ही इसमें सिदधहस्त होते हो। जरूर कोई गहरा न्यस्त स्वार्थ होगा इसके पीछे। क्यों लोग दुखी होना चाहते हैं? जब मैं 'चाहते' शब्द प्रयोग करता है तो मेरा यह मतलब नहीं है कि वे जान-बझ कर ऐसा चाहते हैं। वे तो कहेंगे कि वे नहीं चाहते. 'कौन चाहता है दुखी होना?' वे सुखी होना चाहते हैं। लेकिन बात वैसी नहीं है-वे चिपकते हैं दुख से। वे कहते हैं कि वे सुख चाहते हैं, लेकिन वे चिपकते हैं दुख से। वे कहते हैं कि उन्हें आनंद की आकांक्षा है, लेकिन जो कुछ भी वे करते हैं, वह दुख ही निर्मित करता है। और यह कोई नई बात नहीं है; वे ऐसा जन्मों-जन्मों से कर रहे हैं। फिर-फिर वे वही करते हैं और फिर वे दुखी हो जाते हैं। और वे कहते हैं कि उन्हें आनंद चाहिए। जरूर कोई न कोई न्यस्त स्वार्थ है। मैं तुमसे कुछ बातें कहना चाहूंगा, क्योंकि संभवत: वे सहायक सिद्ध होंगी। जब तुम दुखी होते हो तो सारे संसार की निंदा करना आसान होता है, हर किसी पर जिम्मेवारी थोप देना आसान होता है। जब तुम दुखी होते हो, तो तुम अपने निकट के लोगों का शोषण कर सकते हो क्योंकि तुम दुखी हो, और उनकी जिम्मेवारी है कि वे तुम्हें सुखी करें! जब तुम दुखी होते हो, तो तुम सबसे ध्यान की मांग कर सकते हो : मैं बीमार हूं; मैं दुखी हूं।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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