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________________ जाएं तो कोई तालमेल बिठाना बहुत कठिन हो जाता है। कोई पुरुष कभी किसी स्त्री के साथ तालमेल नहीं बैठा पाया। अंततः वह समर्पण कर देता है, अंततः वह तालमेल बैठाने का पूरा प्रयास ही छोड़ देता है। पुरुष-मन ज्यादा दूर है अ-मन से; वह ज्यादा यंत्रवत है, ज्यादा तर्कपूर्ण है, ज्यादा बौदधिक है-सिर में ज्यादा जीता है। स्त्रैण-मन ज्यादा निकट है, ज्यादा स्वाभाविक है, ज्यादा अतार्किक है-हृदय के ज्यादा निकट है। और हृदय से नीचे नाभि में उतरना कहीं ज्यादा आसान है जहां कि अ-मन का अस्तित्व है। सिर स्थान है बुद्धि का; हृदय स्थान है प्रेम का, अंतर्भाव का; और नाभि के ठीक नीचे, नाभि के दो इंच नीचे, वह केंद्र है जिसे जापानी हारा कहते हैं। वह केंद्र है अ-मन का-जहां जीवन और मृत्य मिलते हैं, जहां सारे दवैत खो जाते हैं। तुम्हें सिर से नीचे हारा में उतरना है। बच्चा पैदा होता है, तो वह हारा से जीता है। मां के गर्भ में बच्चा हारा से जीता है : उसका कोई मन नहीं होता, कोई विचार नहीं होते। वह जीवंत होता है-पूर्णत: जीवंत होता है-असल में वह फिर कभी उतना जीवंत न होगा जितना वह गर्भ में होता है। फिर बच्चा पैदा होता है। तो भी कुछ महीने वह हारा से ही जीता है। कभी किसी बच्चे को सोए हुए देखना : वह पेट से सांस लेता है, छाती से सांस नहीं लेता; छाती तो बिलकुल शांत रहती है। सांस एकदम हारा तक जाती है और हारा पर चोट करती है। वह हारा से जीता है। इसीलिए प्रत्येक बच्चा इतना निर्दोष जान पड़ता है। यदि तुम फिर हारा में थिर हो सको तो तुम फिर निर्दोष हो जाओगे, एक निर्मल दर्पण हो जाओगे। स्त्रैण-मन लक्ष्य नहीं है-स्त्रैण-मन ज्यादा निकट है अ-मन के। इसीलिए लाओत्स जोर दिए जाते हैं 'अक्रिया में जीओ। प्रतीक्षा करो। धैर्यपूर्ण होओ। जल्दी मत करो और आक्रामक मत होओ।' क्योंकि सत्य को जीता नहीं जा सकता है। तुम केवल उसके प्रति समर्पण कर सकते हो। तो आश्रम स्त्रियों द्वारा ही संचालित होगा, जब तक कि मैं ऐसे लोग न ढूंढ लूं जो अ-मन को उपलब्ध हों। जब अ-मन को उपलब्ध व्यक्ति मौजूद होंगे तो स्त्री-पुरुष का कोई प्रश्न ही न रहेगा; तब आश्रम अ-मन के व्यक्तियों द्वारा संचालित होगा। तब एक अलग प्रकार की प्रज्ञा काम करती है। असल में केवल तब ही प्रज्ञा काम करती है : वह केवल बौदधिक समझ नहीं होती; वह एक समग्र अस्तित्व से आती है। पांचवां प्रश्न:
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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