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________________ तुम्हारा मिलना हुआ होगा हाइपोकानड्रिआक लोगों से, रोग के भ्रम में रहने वाले लोगों से, जो अपनी बीमारी की और अपने रोगों की ही बातें करते रहते हैं। और वे इतना बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं कि सच में इतनी बड़ी बीमारी होती भी नहीं। लेकिन यदि तुम कहो कि 'तुम बढ़ा-चढ़ा कर कह रहे हो', तो वे बहुत बुरा अनुभव करते हैं। असल में वे इस विचार में ही बहुत रस लेते हैं कि वे इतने बीमार हैं। वे एक डाक्टर से दूसरे डाक्टर के पास जाते हैं, केवल अपनी कथा सुनाने के लिए। जो बीमारी उन्हें है उसमें कोई मदद नहीं कर सकता उनकी यह वे भलीभांति जानते हैं। कोई भी उतना समझदार नहीं है; किसी को कुछ पता नहीं है। और ऐसी असाधारण बीमारी है उन्हें कि वे पहले से ही जानते हैं कि कोई मदद नहीं कर सकेगा। जब वे निरंतर बात कर रहे होते हैं अपनी बीमारी की तो वे क्या कर रहे हैं? यह ऐसा ही है जैसे कि कोई अपने घाव उघाड़-उघाड़ कर तुम्हें दिखा रहा हो और घाव में अंगुलियां डाल रहा हो और सता रहा हो स्वयं को। वह मांग कर रहा है सहानुभूति पाने की, ध्यान पाने की। और बच्चा बचपन से ही सीख जाता है तरकीब। सारा समाज, एकदम शुरू से- ही, गलत हो जाता है। जब भी बच्चा बीमार होता है तो मां-बाप ज्यादा ध्यान देते हैं। जब भी वह दुखी होता है तो सारा परिवार जिम्मेवारी अनुभव करता है और वह बच्चा एक छोटा-मोटा तानाशाह बन जाता है। जब बच्चा बीमार होता है तो वह अपनी शर्ते मनवा सकता है। वह जिद कर सकता है कि शाम को यह खिलौना लाना होगा, और कोई न नहीं कह सकता क्योंकि वह बीमार है। लेकिन जब वह स्वस्थ होता है तो कोई उसकी परवाह नहीं करता; जब वह ठीक होता है तो कोई उसके पास नहीं आता और कोई उसके पास नहीं बैठता। जब वह बीमार होता है तो पिता आते हैं-महान पिता, इतने महत्वपर्ण व्यक्ति, कि छोटा बच्चा सुख अनुभव करता है; अब वह तुमसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। तुम बिस्तर के करीब बैठे उसके स्वास्थ्य के बारे में पूछ-ताछ करते हो। फिर डाक्टर आते हैं, बड़े डाक्टर, जाने-माने डाक्टर; पड़ोसी आते हैं, मां निरंतर बात कर रही होती है उसकी बीमारी को लेकर। वह केंद्र बन जाता है सारे परिवार का, और परिवार ही कुल संसार होता है उस बच्चे के लिए। सारा संसार उसके आस-पास घूमता है : वह बन जाता है सूर्य और सब चीजें ग्रह बन जाती हैं। उसे लगता है, क्या मजा आ रहा है! अब वह ऐसी तरकीब सीख रहा है, जिसके कारण वह जिंदगी भर पीड़ा पाएगाबड़ी खतरनाक तरकीब सीख रहा है। यदि मेरी बात मानने को तैयार हों तो मैं मां-बाप से कहूंगा कि जब बच्चा बीमार या दुखी हो तो बहुत ज्यादा ध्यान मत दें उसे, बल्कि जब वह खुश और स्वस्थ हो तो ध्यान दें। जब बच्चा खुश हो तो उसे अनुभव होने दें कि वह परिवार का केंद्र है। जब वह बीमार हो तो उसे एक ओर बैठने दें, औषधि दें उसे, लेकिन उसे अनुभव होने दें कि वस्तुत: कोई उसके लिए परेशान नहीं है। वह सबसे अलग-थलग है। यह बात बहुत कठोर मालूम पड़ती है-जो मैं कह रहा हूं बहुत कठोर मालूम पड़ता है लेकिन मैं कहता हूं तुमसे कि यदि तुम पूरी बात को समझो तो यही करुणा है। क्योंकि तुम्हारी
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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