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________________ समझ जाते हो कि हर चीज ने मदद की। भटकाव ने खाई - खड्डों में गिरने ने, पुराने जालों में उलझने ने- हर चीज ने मदद की; कोई चीज व्यर्थ नहीं जाती है। और हर चीज एक सीढ़ी बन जाती है किसी दूसरी चीज के लिए । अभी कल मैं स्वामी अगेहानंद भारती का एक लेख पढ़ता था। उसने जिक्र किया है कि एक बार उसने रविशंकर से पूछा कि जार्ज हैरीसन सितार कैसी बजा लेता है? रविशंकर ने कुछ देर सोचा और फिर कहा, 'वह उसे पकड़ता बिलकुल ठीक है।' लेकिन यह भी एक बड़ी शुरुआत है। यदि तुम सितार सीखना चाहते हो तो सितार को ठीक से पकड़ना जैसे कि उसे पकड़ना चाहिए, एक अच्छी शुरुआत है; वह भी एक उपलब्धि है। इसलिए हंसो | रविशंकर ने प्रशंसा की है जार्ज हैरीसन की, कि वह सितार ठीक से पकड़ता है। पहले तो तुम कर्ता बनोगे उसे अच्छी तरह से करना, यही असली बात है। यदि तुम उसे ठीक से नहीं करते तो तुम्हें फिर-फिर आना होगा, क्योंकि कोई चीज अधूरी नहीं छोड़ी जा सकती उसे पूरा करना होता है। असल में तुम्हें इतनी पूरी तरह से हताश हो जाना होता है कि तुम फिर कभी लौटते नहीं कुछ करने पर फिर करना है अक्रिया को और इतने संपूर्ण रूप से करना है कि वह बात भी समाप्त हो जाती है। और तब लौटने के लिए कहीं कोई मार्ग नहीं बचता। तुम पीछे जा नहीं सकते यदि हर चीज पूरी तरह जी ली गई है; केवल अधूरे अनुभव तुम्हें वापस बुलाते रहते हैं। , अधूरे अनुभवों में एक चुंबकीय शक्ति होती है; वे पूरा किए जाने की मांग करते हैं। इसीलिए तुम बार-बार उसी चक्कर में पड़ जाते हो। तुम अधपके रह जाते हो। एक अनुभव पका नहीं होताबौद्धिक रूप से तुम उसे समझने लगते हो, लेकिन पूरे प्राणों से नहीं - और तुम आगे बढ़ जाते हो। यह बात मदद न करेगी। तुम्हारे संपूर्ण अस्तित्व को समझ में आना चाहिए कि 'यह बात व्यर्थ है।' इसलिए नहीं कि मैं ऐसा कहता हूं-वह बात मदद नहीं करेगी - बल्कि इसलिए कि तुम्हारा पूरा अस्तित्व कहता है, 'यह बात व्यर्थ है। क्या कर रहे हो तुम? यह बिलकुल बेकार है।' करने की, लेकिन कोशिश तब करना- कुछ न करने को वह भी करना ही है, इसीलिए मैं कहता हूं 'करना' बहुत सूक्ष्म बात है। पहले तो है स्थूल हिस्सा जब तुम कुछ करते हो। दूसरी बात सूक्ष्म है; जल्दी ही तुम जान लोगे यह फिर वही है, तुम फिर कुछ कर रहे हो। तुम कोशिश कर रहे हो न मौजूद है और प्रयास मौजूद है तुम्हारा प्रयास न करना भी एक प्रयास है। लेकिन तुम बौद्धिक रूप से समझ सकते हो जो मैं कह रहा हूं उसका सवाल नहीं है। तुम्हें अनुभव करना होता है उसे तो गुजरी उसमें से, जानो उसे । अनुभव के द्वारा परिपक्वता आनी चाहिए - तब एक दिन स्थूल और सूक्ष्म दोनों ही बातें तिरोहित हो जाती हैं अचानक तुम वहां होते हो जहां न कुछ करने को है और न ही कुछ न करने को है।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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