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________________ 2-कृपा करके क्या आप मुझे वचन देंगे कि इस जीवन में मैं जागने से चूकूगा नहीं-और आप मेरे अंतिम गुरु होंगे? 3-क्या सभी मन एक ही तत्व से बने होते है-मूढता से? 4-आपके आश्रम की व्यवस्था केवल स्त्रियों के हाथ में क्यों है? 5-आप आनंदबांट रहे है, लेकिन इस दुःखी दुनियां में लेने वाले इतने कम क्यों है? पहला प्रश्न: रोज-रोज सुबह आपको सुनते हुए भीतर डूबने और देखने की जरूरत के विचार से मैं पूरी तरह भर जाता हूं वस्तुत: मैं उस कुत्ते की भांति अनुभव करता हूं जो अपनी ही पूछ को पकड़ने का प्रयास कर रहा हो : जितनी ज्यादा वह कोशिश करता है उतनी ही कम संभावना होती है सफलता की। लेकिन प्रयास छोड़ने की कोशिश ने भी कुछ ज्यादा मदद नहीं की है क्योंकि ज्यादा सचेत और होशपूर्ण होना भी एक सूक्ष्म क्रिया बन जाता है और मैं वापस उसी ढरें। अच्छी बात है कि तुम सजग हो रहे हो कि न तो कुछ करना मदद कर सकता है और न ही न करना, क्योंकि तुम्हारा न करना भी एक सूक्ष्म क्रिया है। इस सजगता के साथ एक नया दवार र जाएगा-किसी भी दिन, किसी भी क्षण। जब तुम न कुछ करते हो और न कुछ नहीं करते हो, जब केवल तुम होते हो, जब तुम केवल हो-न तो कर्ता और न ही अकर्ता, क्योंकि अकर्ता भी कर्ता ही है द्वैत तिरोहित हो जाता है, तब अचानक तुम पाते हो कि तुम घर में ही हो सदा से; तुमने उसे कभी छोड़ा ही नहीं है, तुम कहीं बाहर कभी गए ही नहीं हो। तब कुत्ता अनुभव करता है कि पूंछ को पकड़ने की कोई जरूरत नहीं; पूछ तो पहले से ही उससे जुड़ी है। पूंछ का पीछा करने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि पूंछ तो पहले से ही कुत्ते के पीछे है। लेकिन व्यक्ति को कुछ करना पड़ता है-कुछ न करने तक पहुंचने के लिए। फिर व्यक्ति को कुछ न करने को साधना होता है अंतस सत्ता तक पहुंचने के लिए। और हर चीज मदद करती है। असफलताएं, निराशाए भी मदद करती हैं-हर चीज मदद करती है। अंततः जब तुम पहुंचते हो, तुम
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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