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________________ फिर तुम क्या करोगे? तुम बस होओगे। पूंछ के पीछे दौड़ने की कोई जरूरत नहीं। अब कुत्ता जानता है कि पूंछ उसकी है। अब कुत्ता बुद्ध हो गया है। यही बुद्धत्व है। दूसरा प्रश्न: दर्शन में या आपके प्रवचनों के दौरान मैं उस चमत्कार से अभिभूत हो उठता हूं जो आप हैं और फिर मैं सोचता हूं कि जरूर ऐसा ही अहसास तब रहा होगा जब मैं बुद्ध के क्राइस्ट के और अन्य गुरुओं के चरणों में बैठा-और असफल हुआ। क्या आप कृपया मुझे वचन देने कि आप इसे सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेने कि आप मेरे अंतिम गुरु होगे? यह तुम पर निर्भर करता है। मैं कोई कसर नहीं छोडूंगा, लेकिन उससे बहुत ज्यादा मदद न मिलेगी-बुद्ध ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी, न ही जीसस ने कोई कसर छोड़ी थी। कोई गुरु कभी कोई कमी नहीं रखता-लेकिन कोई गुरु तुमको बुद्धत्व दे नहीं सकता है। जब तक तुम्ही नहीं समझ जाते, कुछ नहीं किया जा सकता है। कई बार गुरु का प्रयास ही तुम में प्रतिरोध भी निर्मित कर सकता है। मैं ऐसा बहुत बार अनुभव करता हूं। यदि मैं बहुत ज्यादा तुम्हारे लिए कोशिश करता हूं तो तुम भागने लगते हो मुझ से। यदि मैं बहुत ज्यादा कोशिश करता हूं कुछ करने की, तो तुम भयभीत हो जाते हो। मुझे तुम्हें छोटी मात्राएं देनी पड़ती हैं-तुम्हारे पचाने की क्षमता के अनुसार। तो यह तुम पर निर्भर करता है। यदि तुम चाहते हो तो सब कुछ संभव है; लेकिन कहीं गहरे में तुम चाहते ही नहीं। यही तो समस्या है तुम बदलना नहीं चाहते। तुम कहते हो कि तुम सबुद्ध होना चाहते हो, तुम कहते हो कि तुम्हारे लिए यह सड़ी-गली जिंदगी खत्म हो चुकी और तुम इसे रूपांतरित करना चाहते हो। लेकिन क्या यह सचमुच ही तुम्हारे लिए समाप्त हो चुकी है? क्या तुमने सच में उसके साथ अपना लेन-देन समाप्त कर लिया है? क्या कहीं गहरे में तुम्हारे भीतर अभी भी कोई इच्छा छिपी नहीं बैठी है-कोई आशा जो अभी भी जीवित है, कोई बीज जो किसी भी क्षण प्रस्फुटित हो सकता है दूसरे जीवन में? यदि तुम ध्यान दोगे तो तुम समझोगे कि इच्छा है, आकांक्षा है, एक आशा है कि शायद तुमने सारा जीवन नहीं जाना है, कि शायद कहीं कुछ बाकी है जिसे तुम चूक रहे हो, कि शायद आनंद तो मिल सकता था लेकिन तुमने दस्तक नहीं दी सही द्वार पर। यह सब चलता रहता है। तुम आते हो मेरे
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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