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________________ चौथा है ब्रह्मचर्य। इसका अर्थ किया जाता रहा है काम-निग्रह। यह बात ठीक नहीं, क्योंकि ब्रह्मचर्य एक व्यापक शब्द है, बहुत विराट शब्द है। काम-निग्रह बहुत संकीर्ण बात है; वह एक हिस्सा है इसका, लेकिन पूरी बात नहीं है। ब्रह्मचर्य शब्द का अर्थ है-'ब्रह्म जैसी चर्या।' इस शब्द का ही अर्थ है ईश्वर की भांति जीवन, ईश्वरीय जीवन। निश्चित ही, ईश्वरीय जीवन में कामवासना तिरोहित हो जाती है। लेकिन ब्रह्मचर्य कामवासना के विरुद्ध नहीं है। यदि वह कामवासना के विरुद्ध है तो कामवासना कभी तिरोहित नहीं हो सकती। ब्रह्मचर्य रूपांतरण है ऊर्जा का : यह कामवासना के विरुद्ध नहीं है, बल्कि यह पूरी ऊर्जा को कामकेंद्र से हटा कर उच्चतर केंद्रों तक ले जाने की बात है। जब यह ऊर्जा व्यक्ति के सातवें केंद्र तक, सहस्रार तक पहुंचती है, तब ब्रह्मचर्य घटित होता है। यदि वह पहले ही केंद्र में, मूलाधार में बनी रहती है, तो कामवासना होती है। जब वह सातवें केंद्र पर पहुंचती है, तो समाधि होती है। एक ही ऊर्जा यात्रा करती है। यह उसके विरुद्ध होने की बात नहीं; उलटे यह एक कला है कि इसका उपयोग कैसे किया जाए। जो व्यक्ति कामवासना में डूबा है, वह आत्मघाती है। वह अपनी ही ऊर्जा को नष्ट कर रहा है। वह उस आदमी की भांति है जो बाजार जाता है, अपने हीरे दे देता है और कंकड़-पत्थर खरीद लेता है और प्रसन्न होकर घर लौट आता है कि उसने कोई बड़ा सौदा किया। कामवासना में तुम इतना छुद्र पाते हो-एक छोटी सी लहर प्रसन्नता की। और तुम इतनी ऊर्जा खो देते हो! वही ऊर्जा तुम्हें असीम आनंद दे सकती है, लेकिन तब उसे ऊंचे उठना होता है। सके विरुद्ध मत हो जाना। यदि तुम उसके विरुदध हो, तो तुम उसका रूपांतरण नहीं कर सकते; क्योंकि जब तुम किसी चीज के विरोध में होते हो, तो तुम उसे समझ नहीं सकते। समझने के लिए बड़ी सहानुभूति चाहिए। यदि तुम विरोध में हो, तो तुम कैसे सहानुभूति रख सकते हो। जब तुम शत्रुता रखते हो किसी चीज के प्रति, तो तुम निरीक्षण भी नहीं कर सकते। तुम अलग हट जाना चाहते हो अपने शत्रु से; तुम बचना चाहते हो शत्रु से। अपनी कामवासना के साथ मैत्रीपूर्ण रहना, क्योंकि वह तुम्हारी ऊर्जा है; उसमें बड़ी संभावनाएं छिपी हैं। वह ईश्वर है-अपरिष्कृत। कामवासना अनगढ़ समाधि है। वह रूपांतरित हो सकती है, वह परिवर्तित हो सकती है, वह परिष्कृत हो सकती है। संपूर्ण योग मार्ग है-निम्न को उच्चतर में रूपांतरित करने का, परिवर्तित करने का। सारी कला यही है कि लोहे को सोने में कैसे बदला जाए। योग कीमिया है, तुम्हारे आंतरिक जगत की कीमिया है। ब्रह्मचर्य का अर्थ है : काम-ऊर्जा को समझने की कोशिश, यह समझने की कोशिश कि कैसे वह तुम्हारे भीतर गतिशील होती है; यह समझने की कोशिश कि सच में आनंद आता कहां से है-वह संभोग से आता है? काम-ऊर्जा की निर्मुक्ति से आता है? या कहीं और से आता है? यदि तुम सजग
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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