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________________ विरुद्ध कुछ कहने के प्रति सजग रहना-क्योंकि वह सच हो सकता है। हमारे पास बहुत सी कथाएं हैं महान ऋषियों की, जिन्होंने क्रोध में कुछ कह दिया, लेकिन वे इतने प्रामाणिक थे कि..। तुमने सुना होगा दुर्वासा का नाम-स्व महान ऋषि, प्रामाणिक व्यक्ति, लेकिन यदि वह कुछ कह दे, तो उसे वह स्वयं भी वापस नहीं ले सकता। यदि वह शाप दे देता है किसी को, तो वह शाप पूरा होगा ही। यदि वह कह दे, 'तुम कल मर जाओगे।' तो तुम कल मर ही जाओगे, क्योंकि प्रामाणिकता के उस स्रोत से झूठ का आना संभव ही नहीं है। पूरा अस्तित्व समर्थन करता है प्रामाणिक व्यक्ति का। और फिर वह व्यक्ति भी उसे वापस नहीं ले सकता। सुंदर है बात। इसीलिए लोग महान ऋषियों के पास उनका आशीर्वाद पाने के लिए जाते हैं : यदि वे आशीष दे दें, तो बात होकर रहेगी। यही है अर्थ, और कुछ भी नहीं। वे जाते हैं और मांगते हैं आशीष। यदि ऋषि आशीष दे देता है, तो उन्हें चिंता नहीं रहती; अब बात पूरी होगी ही, क्योंकि एक प्रामाणिक व्यक्ति झूठ कैसे कह सकता है! यदि वह झूठ भी हो, तो भी सच होने ही वाला है। तो मैं नहीं कहता, 'सच बोलो।' मैं कहता हूं 'प्रामाणिक रही और जो भी तुम कहते हो, सच होगा।' तीसरा है अस्तेय, अचौर्य-चोरी न करना, ईमानदारी। मन बड़ा चोर है। बहुत तरीकों से वह चोरी करता है। हो सकता है तुम लोगों की चीजें न चुराते हो। लेकिन तुम विचारों को चुरा सकते हो। मैं तुमसे कहता हूं कोई बात; तुम बाहर जाते हो और तुम दिखाते हो कि वह तुम्हारा ही विचार है। तो तुमने उसे चुराया है, तुम चोर हो। शायद तुम्हें पता भी नहीं होगा कि तुम क्या कर रहे हो। पतंजलि कहते हैं, 'अचौर्य की अवस्था में रहना।' ज्ञान, चीजें-कुछ भी चुराना नहीं चाहिए। तुम्हें मौलिक होना चाहिए और सदा सजग रहना चाहिए कि 'ये चीजें मेरी नहीं हैं।' खाली रहो, वह बेहतर है, लेकिन अपने घर को चुराई हुई चीजों से मत भर लेना। क्योंकि यदि तुम चोरी करते रहते हो, तो तुम सारी मौलिकता खो दोगे। तब तुम कभी न खोज पाओगे तुम्हारा अपना आकाश. तुम भर जाओगे दूसरों की धारणाओं से, विचारों से, बातों से। और अंततः वे किसी मूल्य की सिद्ध नहीं होती। केवल वही मूल्यवान है, जो कि तुम से आता है। असल में केवल वही तुम्हारा है जो तुम से आता है, और कुछ भी नहीं। तुम चुरा तो सकते हो, लेकिन तुम उसका आनंद नहीं ले सकते। एक चोर कभी निश्चित नहीं होता, हो नहीं सकता-उसे सदा पकड़े जाने का भय होता है। और यदि उसे कोई न भी पकड़ पाए, तो भी वह तो जानता ही है कि वह चीज उसकी नहीं है। यह बात एक निरंतर बोझ बनी रहती है उसके हृदय पर। पतंजलि कहते हैं, 'चोर मत बनो-किसी भी ढंग से, किसी भी आयाम से।' ताकि तुम्हारी मौलिकता का फूल खिल सके। स्वयं को चुराई हुई चीजों और विचारों द्वारा, दर्शन-सिद्धांतों द्वारा, धर्मों द्वारा मत बोझिल करना। खिलने देना अपने अंतर-आकाश के फूल को।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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