SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हां, बच्चा , बच्चा ध्यान में होता है। लेकिन यह ध्यान होता है अज्ञान के कारण; उसे चले ही जाना है। वह जिसे तुमने अर्जित नहीं किया है तुम्हारे साथ नहीं बना रह सकता है केवल वही जो तुमने अर्जित किया है, तुम्हारा होता है। बच्चा ध्यानपूर्ण होता है क्योंकि वह अज्ञानी है। उसके पास बहुत विचार नहीं होते बेचैन करने को। बच्चा ध्यानपूर्ण होता है क्योंकि स्वभावतया, जहां कहीं मन सुख पा लेता है, वह मन को वहीं सरकने देता है। वस्तुतः बच्चा अभी समाज का हिस्सा नहीं हुआ भांति। लेकिन बीज विकसित हो रहा होता है। सारा ध्यान खो जाएगा, बचपन की वह निर्दोषता खो जायेगी। बच्चा होता है ईदन के बगीचे में आदम और हब्बा की भांति ही। उसे गिरना ही होगा। उसे पाप करना ही होगा। वह फेंक ही दिया जाएगा संसार में, क्योंकि केवल संसार के अनुभव द्वारा ही वह ध्यान उदित होता है जो पका हुआ होता है, जो खो नहीं सकता। होता। बच्चा अभी भी आदिम होता है, एक पशु की देर- अबेर वह हो ही जाएगा समाज का । और फिर, तो दो प्रकार की निर्दोषता होती है एक होती है अज्ञान के कारण, दूसरी होती है जागरुकता के कारण। बुद्ध हैं बच्चे की भांति, और सब बच्चे हैं बुद्ध की भाति, लेकिन एक विशाल अंतर बना रहता है। सारे बच्चे खो जाएंगे संसार में। उन्हें चाहिए अनुभव, उन्हें जरूरत होती है संसार में फेंक दिये जाने की। और यदि अपने अनुभव द्वारा वे ध्यान को उपलब्ध होते हैं, फिर प्राप्त कर लेते हैं निर्दोषता और बचपन तो फिर कोई नहीं फेंक सकता उन्हें अब वह आया हुआ होता है अनुभव में से, उन्होंने सीखा होता है उसे अब यह उनका अपना खजाना होता है। यदि हर चीज ठीक रहती है, तो तुम फिर बच्चे बन जाओगे अपने जीवन के अंत में। और यही है सारे धर्मों का लक्ष्य और यही है पुनर्जन्म का अर्थ यही होता है अर्थ ईसाइयों के पुनजग़वत होने का पुनर्जीवन शरीर का नहीं होता, यह तो आत्मा का होता है, फिर से व्यक्ति हो जाता है बच्चे की भांति। फिर वह व्यक्ति हो जाता है निर्दोष, लेकिन यह निर्दोषता आधारित होती है अनुभव में यदि तुम मर जाते हो फिर से बच्चा बने बिना, तो तुमने अपने जीवन को जीया होता है व्यर्थ ढंग से तुम जीये होते हो व्यर्थता से तुमने बिलकुल गंवा दिया है अवसर और तुम्हें आना होगा फिर से समष्टि तुम्हें फिर-फिर वापस फेंकती जाएगी। यही है पुनर्जन्म का सार सिद्धात जब तक कि तुम स्वयं ही न सीखो, समष्टि संतुष्ट नहीं होती है तुमसे। जब तक कि तुम अपनी ओर से बच्चे नहीं बन जाते- तुम्हारे शरीर के कारण नहीं, बल्कि तुम्हारी बीइंग के कारण यदि निर्दोषता तुम्हारे द्वारा प्राप्त की जाती है, और निर्दोषता प्राप्त की जाती है, सारे विक्षेपों के बावजूद, उस सबके बावजूद जो वहां है उसे नष्ट कर देने को अन्यथा तो तुम फेंक दिए जाओगे फिर बार-बार ।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy