SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवन है एक सीखना, यह एक अनुशासन है। इसलिए केवल तुम्ही नहीं, बल्कि प्रत्येक बच्चा ध्यानपूर्ण रहा है और फिर वह भटक गया। बच्चा नहीं भटकता दूसरों के कारण; एक मूलभूत आवश्यकता होती है। उसे खो देनी पड़ती है वह निर्दोषता। वह पर्याप्त रूप से गहरी नहीं होती, वह बाधाओं में से नहीं गुजर सकती। वह उथली होती है। तुम जरा सोचना इस बारे में : एक बच्चा निदोष होता है, पर बहुत उथला होता है। उसमें कोई गहराई नहीं होती। उसकी सारी भावनाएं सतही होती हैं। इस क्षण वह क्रोध में होता है, अगले क्षण वह क्षमापूर्ण हो जाता है; बिलकुल भूल ही गया होता है। वह जीता है बहुत उथला जीवन, उखड़ा हुआ जीवन। उसमें कोई गहराई नहीं होती। अज्ञान के पास निर्दोषता हो सकती है, पर गहराई नहीं हो सकती। गहराई आती है अनुभव से।। बुद्ध में गहराई है, अपरिसीम गहराई। सतह पर तो वे बिलकुल एक बच्चे की भांति हैं, लेकिन अपने अस्तित्व की गहराई में वे बच्चे की भांति बिलकुल नहीं हैं। जन्मों-जन्मों के सारे अनुभव ने उन्हें पका दिया है। कोई चीज व्याकुल नहीं कर सकती उन्हें, कोई चीज उनकी निर्दोषता को नष्ट नहीं कर सकती-कोई चीज नहीं, कोई भी चीज नहीं। अब उनकी निर्दोषता इतनी गहरे में जुड़ गयी होती है कि आधी-तूफान आ सकता है-वस्तुत उसका स्वागत होता है-और वृक्ष उखड़ेगा नहीं। वह तूफान के आगमन पर आनंद मनाएगा। उसे उखाड़ने के तूफान के इस प्रयत्न पर भी वह आनंद ही मनाता है। और जब तूफान गुजर जाता है, वह ज्यादा शक्तिशाली हो जाएगा उससे, दुर्बल नहीं। यही है भेद : बचपन की निर्दोषता एक भेंट होती है प्रकृति की; निदोषता जो तुम प्राप्त करते हो तुम्हारे अपने प्रयास द्वारा, वह प्रकृति की दी हई भेंट नहीं होती, तमने अर्जित किया होता है उसे। और सदा याद रखना कि जो कुछ तुमने अर्जित किया होता है वह तुम्हारा होता है। कोई चोरी, कोई डकैती संभव नहीं अस्तित्व में। और तुम उसे उधार नहीं ले सकते किसी दूसरे से। सातवां प्रश्न : सपनों के विषय में बहुत प्रश्न पूछे जाते रहे हैं। किसी ने पूछा है 'क्या दिव्य-दर्शन भी स्वप्न होते हैं?' 'निद्रा और स्वप्न में कैसे सचेत रहा जाए?' 'कई बार मुझे लगता है कि आप मेरे सपनों में आते हैं। ऐसे सपनों के बारे में मुझे क्या सोचना होगा?'
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy