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________________ पदोनों एक ही हैं जब तुम फिर से जीते हो, तो तुम अनसीखा कर देते हो। फिर से जीना एक प्रक्रिया है भुला देने की। जो कुछ तुम फिर से जीते, तुम्हारे पास से गायब हो जाता है, वह भुलाया जा चुका होता है; वह कोई निशान नहीं छोड़ता, स्लेट साफ हो जाती है। तुम इसे अनसीखा करने की प्रक्रिया कह सकते हो। यह एक ही बात है। सातवां प्रश्न: पतंजलि के अनुसार यदि अच्छा और बुरा स्वप्नवत होता है तो कर्म का सिद्धांत कैसे अस्तित्व रख सकता है? क्याकि तम स्वप्नों में विश्वास रखते हो, तुम विश्वास करते हो कि वे सच हैं। कर्मों का अस्तित्व होता है तुम्हारे विश्वास के कारण। उदाहरण के लिए, रात में तुम्हें स्वप्न आया छ कोई बैठा हुआ था तुम्हारे शरीर पर अपने हाथ में छुरा लिए हुए और तुम्हें लग रहा था कि तुम्हें मार दिया गया, और तुमने कितनी-कितनी कोशिश की इस स्थिति से बच निकलने की, लेकिन ऐसा कठिन था। फिर भय के कारण ही तुम जाग गए। तुम जानते हो अब कि यह स्वप्न था, लेकिन शरीर अभी भी थोड़ा कंपता रहता है; पसीना छूट रहा होता है। तुम अभी भी भयभीत होते हो और तुम जानते हो कि तो केवल स्वप्न था, लेकिन तम्हारा सास लेना अभी भी सरल और स्वाभाविक नहीं है। उसमें कुछ मिनट लगेंगे। करा पर! जाता है? दुखस्वप्न में तुमने मान लिया था कि वह सच है। जब तुम मान लेते हो कि वह सच है, तो वह तुम्हें प्रभावित करता है वास्तविकता की भांति। कर्म स्वप्न-सदृश होते हैं। तुमने किसी का खून कर दिया तुम्हारे पिछले जन्म में, वह बात एक स्वप्न है, क्योंकि पूरब में सारा जीवन ही माना जाता है स्वप्न की भांति-अच्छे, बरे, सभी स्वप्न। लेकिन तुम तो मानते हो कि वह सच था, इसलिए तुम पाओगे पीड़ा। यदि तुम बिलकुल अभी समझ ते हो कि जो कछ घटित हआ वह सब सपना था, जो घट रहा है सब सपना है, और जो सब घटने वाला है वह सपना है, केवल तुम्हारी चेतना सत्य है, हर चीज जो घटती है वह सपना है, देखना सपना है, केवल द्रष्टा ही सच है, तब अचानक सारे कर्म धुल जाते हैं। तब कोई जरूरत नहीं रहती प्रतिप्रसव की प्रक्रिया में उतरने की। वे बिलकुल धुल ही जाते हैं। अचानक तुम उनसे बाहर आ जाते हो। यही है वेदांत की विधि, जिसमें शंकराचार्य जोर देते हैं कि सारा जीवन ही एक स्वप्न है। आग्रह इसलिए नहीं है कि वे एक दार्शनिक हैं-वे नहीं हैं दार्शनिक। जब वे कहते हैं कि संसार माया है तो
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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