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________________ यह बात कोई दर्शन का सिद्धांत नहीं होती, यह कोई आध्यात्मिक बात नहीं होती। यह एक विधि है। यह एक समझ है। यदि तुम किसी चीज में विश्वास करते हो तो वह वास्तविक बात की भांति तुम्हें प्रभावित करती है, तुम्हारा विश्वास उसे बना देता है वास्तविक| यदि तुम मानते हो कि वह सच नहीं है, तो वह तुम्हें प्रभावित नहीं कर सकती। उदाहरण के लिए तुम बैठे होते हो अंधेरे कमरे में और अचानक तुम कोई चीज देखते हो कमरे में। तुम्हें लगता है वह सांप है- भय होता है, आतंक होता है। तुम बिजली जला देते हो, लेकिन वहां तो कुछ भी नहीं, मात्र एक टुकड़ा है अखबार का, जो कि हिला –था हवा से। और तुम्हें लगा कि कोई सांप चल रहा था। तुम्हें लगा कि वह सच था, और तुम्हारे मानने ने उसे सच बना दिया-उतना ही वास्तविक जितना कोई वास्तविक सांप होता है, और तुम उसके द्वारा प्रभावित हो गए। इसके ठीक विपरीत अवस्था को सोचो, अगली रात वहा सचमुच का सांप है और तुम अंधेरे में बैठे हुए हो। तुम देखते हो किसी चीज को चलते हुए और तुम सोचते हो कि फिर जरूर वैसा ही अखबार का पन्ना होगा, और तुम भयभीत नहीं होते, तुम पर असर नहीं होता। तुम बैठे ही रहते जैसे कि इसमें तो कुछ है ही नहीं। वास्तविकता तुम्हें प्रभावित नहीं करती। सवाल 'वास्तविकता' का नहीं है। विश्वास उसे बना देता है वास्तविक, विश्वास तुम्हें प्रभावित करता है। जितने ज्यादा तुम सजग होते हो, उतना ज्यादा जान पड़ेगा जीवन स्वप्न की भांति, जब कोई चीज तुम्हें प्रभावित 'नहीं करती। इसलिए कृष्ण अर्जुन से कहते हैं गीता में, 'तुम चिंता मत करो, तुम मारो। यह तो सब स्वप्न है।' न भयभीत था, क्योंकि उसने सोचा कि ये लोग जो सामने खडे हैं शत्र हैं, वे वास्तविक हैं। उन्हें मारना पाप होगा और लाखों को मारना-कितना ज्यादा पाप चढ़ेगा उस पर! और कैसे वह इसका संतुलन ठीक कर पाएगा अच्छाई कर-कर के? यह तो असंभव होगा। उसने कहा कृष्ण से, 'मैं भाग जाना चाहता हूं जंगलों में। यह लड़ाई मेरे लिए नहीं है। यह युद्ध पाप से बहुत ज्यादा भरा लगता है।' कृष्ण जोर देते ही गए, 'तुम चिंता मत करो, कोई मरता नहीं है क्योंकि आत्मा अनश्वर है। केवल शरीर मरता है लेकिन शरीर तो पहले से मरा होता है, इसलिए बहुत ज्यादा अशांत मत होओ। यह सब स्वप्न जैसा है; और यदि तुम इन लोगों को न भी मारो, फिर भी वे मर ही जाएंगे। वस्तुत: उनकी मृत्यु की घड़ी आ पहुंची है और तुम्हें तो बस मदद ही करनी है इसमें। तुम नहीं मार रहे हो उन्हें। तुम इसे मानो स्वप्न की भांति। तुम इसे सच नहीं मानो।' यही है वेदांत का सारा दृष्टिकोण। वेदांत एक विधि है जिसमें धीरे – धीरे तुम सजग होते हो जीवन की स्वप्न जैसी गुणवत्ता के प्रति। एक बार उस अनुभूति के साथ तुम्हारा तालमेल बैठ जाता है तो सारे कर्म समाप्त हो जाते हैं। जो कुछ तुमने किया, वह कोई अर्थ नहीं बनाता। यदि रात में तुम चोर थे या खूनी, रात तुम मुनि थे, संत थे, तो सुबह क्या इससे कुछ अंतर पड़ेगा? या स्वप्न यह था कि तुम पापी थे; और स्वप्न यह था कि तुम पुण्यात्मा संत थे -क्या इससे कुछ अंतर पड़ेगा? स्वप्न तो
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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