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________________ सिद्धांत।' ऑस्पेंस्की कहता है -जब वह कहता है तो वह गर्वित होकर या अहंकारी होकर या इसी तरह का कुछ होकर नहीं कहता- 'दोनों के अस्तित्व में आने से पहले भी तीसरे का अस्तित्व था।' वह कहता है टर्सियम ऑरगानम में, 'मैं सारे ज्ञान के वास्तविक मूल को ही इसमें ला रहा है। और यह कोई अहंकार युक्त बात नहीं; वह किताब सचमुच ही असाधारण है। गरजिएफ का प्रयास ही निर्भर करता था ऑस्स्की और उसके बीच के गहरे सहयोग पर। उसे राह दिखा देनी थी और ऑस्पेंस्की को उसे सूत्रों में पिरोना था, सूत्रबद्ध करना था, उसे एक ढाचा देना था। आत्मा आनी थी गुरजिएफ से और शरीर देना था ऑस्स्की को, और ऑस्पेंसकी ने उसे बीच में ही धोखा दे दिया। वह एकदम छोड़ ही गया गुरजिएफ को। वैसी संभावना सदा से थी, क्योंकि वह इतना बौद्धिक था और गुरजिएफ बिलकुल ही प्रति-बौद्धिक था। यह लगभग असंभव बात थी कि वे अपना सहयोग बनाए रखते। गुरजिएफ ने मांग की बेशर्त समर्पण की-जैसी मांग गुरुओं ने सदा की है; और ऐसी बात कठिन थी ऑस्स्की के लिए-जैसी यह सदा कठिन होती है प्रत्येक शिष्य के लिए। और यह ज्यादा. कठिन होती है, जब शिष्य बहुत बौद्धिक होता है। धीरे – धीरे ऑस्स्की सोचने लगा कि वह सब कुछ जानता था। यह एक धोखा होता है जिसे बदधिजीवी आसानी से निर्मित कर लेता है। वह इतना बौद्धिक व्यक्ति था कि उसने हर चीज सूत्रबद्ध की और वह अनुभव करने लगा कि वह जानता था। फिर धीरे-धीरे दरार पड़ने लगी। गरजिएफ सदा माग करता था असंगत बातों की। उदाहरण के लिए, ऑस्स्की हजारों मील दूर था र गरजिएफ ने उसे तार भेज दिया 'फौरन चले आओ, हर चीज छोड कर।' ऑस्स्की आर्थिक, पारिवारिक झंझट में, और भी कई चीजों में फंसा हुआ था, और यह बात उसके लिए करीब-करीब असंभव थी कि सब छोड-छाड तुरंत चल देता, लेकिन वह छोड़ आया। उसने बेच दी हर चीज, वह हट आया परिवार से और वह फौरन भाग आया। जब वह पहुंचा, तो जो पहली बात गुरजिएफ ने कही, वह थी, 'अब तुम जा सकते हो वापस।' यही वह बात थी जिसने कि दरार खिंचने की शुरुआत की। ऑस्स्की चला आया और फिर कभी वापस न आया लेकिन वह चूक गया। वह तो मात्र एक जांच थी समग्र समर्पण की। जब तुम समग्ररूपेण समर्पित होते हो, तो तुम पूछते नहीं, क्यों? गुरु कहता है, 'आओ ', तुम आ जाते हो। गुरु कहता, 'जाओ', तुम चले जाते हो। यदि ऑस्स्की उस दिन उसी सरलता से चला गया होता जैसे कि आया था, तो उसके भीतर की कोई गहरी बात जो उसके सारे विकास को अवरुद्ध कर रही थी, गिर गयी होती। लेकिन ऑस्स्की जैसे आदमी के लिए यह बात जरा ज्यादा बेमानी हो गयी कि गुरजिएफ ने अचानक कहा, और वह चला आया। वह जरूर बहुत-सी अपेक्षाएं लिए आया होगा, क्योंकि वह सोच रहा था कि उसने तो इतना कुछ त्याग दिया परिवार, समस्याएं, आर्थिक व्यवस्था, नौकरी -वह छोड़ आया था हर चीज। वह सोच रहा होगा कि वह कोई आत्मबलिदानी था। वह आ
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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