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________________ पश्चिम में अब दूसरे प्रकार का मनोविज्ञान प्रसव -पीड़ा में से गुजर रहा है, अब्राहम मैसलो, एरिक फ्राम, जैनोव और दूसरों के साथ। यह एक समग्र पहुंच है : रोग की भाषा में नहीं सोचा जा रहा है बल्कि स्वास्थ्य की भाषा में सोच रहे हैं, मौलिक रूप से रोग -विज्ञान पर एकाग्र नहीं हो रहे हैं, बल्कि मौलिक रूप से एकाग्र हो रहे हैं स्वस्थ मानवता पर। दसरा मनोविज्ञान उत्पन्न हो रहा है, लेकिन अभी वह पूरा नहीं हआ है। इसीलिए मैं कहता है कि वह तो केवल प्रसव -पीड़ा में ही है, वह आ रहा है संसार में। देर- अबेर वह तेजी से विकसित होने लगेगा। केवल तभी तीसरे प्रकार का मनोविज्ञान संभव होता है। इसलिए मैं कहता हं कि उसका कभी अस्तित्व ही न था। बुद्ध हुए हैं, लाखों हुए, लेकिन बुद्धों का मनोविज्ञान नहीं हुआ, क्योंकि कभी किसी ने जागरूक मन को विशेष रूप से खोज कर उसके द्वारा कोई वैज्ञानिक अनुशासन निर्मित करने की कोशिश ही नहीं की। बुद्ध हुए हैं, लेकिन किसी ने कोशिश नहीं की है बुद्धत्व की घटना को वैज्ञानिक तरीकों से समझने की। गुरजिएफ पहला आदमी था मनुष्यता के पूरे इतिहास में जिसने कोशिश की। इस अर्थ में गुरजिएफ विरला ही था, क्योंकि वह एक प्रवर्तक था तीसरी संभावना का। जैसा कि सदा होता है पहल करने वालों के साथ, कि यह कठिन था, बहुत कठिन था किसी ऐसी चीज में उतर जाना जो कि सदा अज्ञात बनी रही हो, लेकिन उसने कोशिश की। वह कुछ टुकड़े अंधेरे से बाहर ले आया है, लेकिन वह बात और - और कठिन हो गयी क्योंकि उसके सब से बड़े शिष्य पी डी ऑस्स्की ने उसे धोखा दिया। एक कठिनाई थी। गरजिएफ स्वयं एक रहस्यवादी था, विज्ञान की दनिया से परिचित न था, वह वैज्ञानिक मन का नहीं था। वह एक रहस्यवादी था, वह बुद्ध था। सारा प्रयास निर्भर करता था पी डी. ऑस्स्की पर, क्योंकि वह एक वैज्ञानिक आदमी था सब से बड़े गणितज्ञों में से एक, और इस शताब्दी के कशलतम विचारकों में से एक। सारी बात निर्भर करती थी ऑस्स्की पर। गुरजिएफ को बीज बोने थे और ऑस्स्की को उस पर काम करना था, उसे परिभाषित करना था, उसे एक दर्शन के रूप में सामने लाना था, उसमें से वैज्ञानिक सिद्धांत बनाने थे। वह एक सतत सहयोग था गुरु और शिष्य के च का। गुरजिएफ बीज बो सकता था, लेकिन वह उसकी वैज्ञानिक परिभाषा न कर सकता था और वह न ही उसे इस ढंग से रख सकता था कि वह कोई अनुशासन बन सकता। वह जानता था कि बात क्या है, लेकिन भाषा की कमी पड़ रही थी। ऑस्स्की के पास भाषा मौजूद थी। बिलकुल परिपूर्ण थी। मैं और कोई तुलना नहीं खोज पाता, ऑस्स्की इतनी पूरी और सही बात कहता था कि अल्वर्ट आइंस्टीन तक को ईर्ष्या होती। उसके पास वस्तुत: एक बहुत ही प्रशिक्षित तर्कसंगत मन था। तुम पढ़ो उसकी एक किताब 'टर्सियम ऑरगानम' वह एक विरल घटना है। ऑस्स्की कहता है उस किताब में, बिलकुल शुरू में ही : संसार में केवल तीन किताबें हैं : एक है अरस्तु की 'ऑरगानम-विचार का पहला सिद्धांत', दूसरी है बेकन की 'नोवम ऑरगानम-विचार का दूसरा सिद्धांत'; और तीसरी है 'टर्सियम ऑरगानम-विचार का तीसरा
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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