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________________ की है। वह जरूरत वैज्ञानिक है उन्होंने निर्मित किया है पहले प्रकार का मनोविज्ञान। तुरंत ही दूसरे प्रकार का संभव हो जाता है। दूसरा है स्वस्थ आदमी का मनोविज्ञान। दूसरे मनोविज्ञान के अंश पूरब में सदा अस्तित्व रखते रहे, लेकिन अंश ही, टुकड़े ही बने रहे, कभी संबद्ध संपूर्णता नहीं बने। टुकड़े ही क्यों? क्योंकि धार्मिक लोगों को इसमें रुचि थी कि साधारण, स्वस्थ व्यक्ति को इंद्रियों के अनुभव के पार कैसे बढ़ाए। थोड़ी खोज की है उन्होंने, गहरे विस्तार में नहीं, एकदम अंत तक नहीं, क्योंकि उन्हें किसी मनोविज्ञान को निर्मित करने में कोई रुचि न थी। उन्हें रस था मात्र किसी आधार को खोज लेने में, ठोस मन का कोई ऐसा आधार तल जहां से कि ध्यान में छलांग लगाई जा सके। उनकी रुचि अलग थी। उन्होंने सारे क्षेत्र की कोई परवाह नहीं की! जब कोई आदमी बस छलांग लगा लेना चाहता है नदी में –तो वह सारे किनारे की खोज नहीं करता। वह ढूंढ लेता है स्थान, कोई छोटी चट्टान और वहा से वह छलांग लगा देता है। सारे क्षेत्र को खोजने की कोई जरूरत नहीं। दूसरे मनोविज्ञान के अंश अस्तित्व रखते थे पूरब में। वे मौजूद हैं पतंजलि में, बुद्ध में, महावीर में' और कई दूसरों में –बस थोड़े से ही टुकड़े, पूरे क्षेत्र का एक हिस्सा ही। सारी पहुंच वैज्ञानिक न थी, पहुंच धार्मिक थी। ज्यादा की जरूरत न थी। तो इसकी फिक्र क्यों लेते वे? मात्र छोटी –सी भूमि को साफ कर लेने से ही, वहा से वे उड़ान भर सकते थे अपरिसीम में। सारे जंगल को साफ करने की कोशिश ही क्यों करनी? -और यहां एक विशाल जंगल है। मानव -मन एक विशाल घटना है। रुग्ण मन स्वयं में ही एक बड़ी घटना है। स्वस्थ तो और भी ज्यादा बड़ा होता है रूग्ण मन से, क्योंकि रूग्ण मन तो मात्र एक हिस्सा होता है स्वस्थ मन का, वह संपूर्ण बात नहीं। कोई कभी पूरी तरह पागल नहीं होता है, कोई हो नहीं सकता। केवल एक हिस्सा ही पगला जाता है, केवल एक हिस्सा ही बीमार हो जाता है, लेकिन कोई भी पूरी तरह बीमार नहीं होता है। यह एकदम शरीर -विज्ञान की भांति ही है, किसी का शरीर संपूर्णतया बीमार नहीं हो सकता है। क्या कभी तुमने देखा है किसी के शरीर को पूरी तरह बीमार होते हुए? उसका तो अर्थ होगा कि जितनी सारी बीमारी मानवता के लिए संभव है, एक ही आदमी के शरीर में घट गई है। वैसा असंभव है, कोई उतनी हद तक नहीं पहुंचता। किसी के सिर में पीड़ा होती है, किसी का पेट दुखता है, किसी को बुखार होता है, कुछ न कुछ चलता रहता है-किसी हिस्से में ही। और शरीर एक विशाल घटना है, एक पूरा ब्रह्मांड है। यही बात सच है मन के लिए मन है पूरी सृष्टि। सारा मन कभी पागल नहीं होता और इसलिए पागल आदमियों को वापस होश में लाया जा सकता है। यदि सारा मन पागल हो जाता है, तो तुम उसे होश में न ला सकते थे, कोई संभावना न थी। यदि सारा मन पागल हो जाता है तो कैसे उसे वापस होश में लाओगे? मात्र एक हिस्सा, एक हिस्सा ही भटक जाता है। तुम ला सकते हो उसे वापस, उसे फिर से समस्त के अनकुल बैठा सकते हो।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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