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________________ और तुम्हें सुंदर नींद आएगी, क्योंकि दिन का और तुम्हारा लेन-देन समाप्त हुआ। अब दिन तुम्हारे सिर पर सवार नहीं है। तुमने उसे होशपूर्वक जी लिया है फिर से दिन में यह कठिन था होशपूर्ण बने रहना; तुम बहुत सारी चीजों से जुड़े थे। और तुम्हारे पास ऐसी चेतना नहीं है जिसे कि अभी तुम बाजार में साथ रख सको शायद मंदिर में कुछ पलों के लिए घटती है वह, शायद ध्यान में, कुछ पलों को तुम सजग हो जाओगे। तुम्हारे पास कोई इतनी ज्यादा चेतना नहीं है कि तुम बाजार में दुकान में, सांसारिक झंझटों में साथ रख सको, जहां कि तुम होशपूर्ण नहीं रहते हो। फिर तुम निद्राचारिता की उसी पुरानी आदत में जा पड़ते हो। लेकिन बिस्तर पर लेटे हुए, तुम होशपूर्ण रह सकते हो। जरा ध्यान दो, फिर से जीओ, हर चीज को घटने दो फिर से वस्तुतः ऐसा ही घटता है बुद्ध को । तुम रात होशपूर्वक फिर से जीते हो. पत्नी ने कहा था कुछ, फिर तुमने कुछ कहा था, फिर उसने प्रतिक्रिया की फिर उसी तरह सारी बात आ खड़ी हुई कैसे तुम क्रोधित हुए थे और उसे मारा था, और कैसे उसने रोना शुरू कर दिया था। और फिर तुम्हें उससे संभोग करना पड़ा। पल पल ब्यौरे में जाओ, उतरो हर चीज में ध्यानपूर्ण बने रहो, यह कहीं ज्यादा आसान होता है क्योंकि किसी चीज से कुछ खास लेना देना नहीं होता। वह संसार अब मौजूद नहीं तुम उसे देख सकते हो और फिर से जी सकते हो, जिस घड़ी तुम पहुंच रहे होते हो सुबह तक तो तुम बड़ी शाति अनुभव करोगे और निद्रा की विस्मरण भरी शाति तुम पर उत्तर रही होगी, किसी बेहोशी की भाति नहीं, बल्कि मखमल जैसे सुंदर अंधेरे की भांति तुम उसे हो, तुम उसे महसूस कर सकते हो। वह स्नेहार्द्रता एक मां की भांति तुम्हारे चारों ओर छा जाती है और फिर तुम उतर जाते हो रात्रि में । छू सकते तुम कम स्वप्न देखोगे क्योंकि स्वप्न निर्मित होते हैं अनजीए दिन के द्वारा। लाखों चीजें घट रही होती हैं। तुम उन सभी को नहीं जी सकते और तुम उन्हें किसी सजगता सहित नहीं जी सकते। वे झूलती रहती हैं। सारे अनजीए दिन की या कि बेहोशी में जीए दिन की मंडराती रह गयी प्रक्रिया होती है स्वप्न, बात एक ही है। आधे मन से जीया दिन, किसी तरह घिसटते हुए जीया गया दिन, जैसे कि तुमने शराब पी हुई हो, इसी तरह निर्मित होते हैं स्वप्न । जो प्रक्रिया अधूरी पड़ी रही दिन में उसे ही पूरा करने को स्वप्न होते हैं। मन पूर्णतावादी है वह कोई चीज अधूरी नहीं रहने देना चाहता । वह उसे पूरा करना चाहता है और इसीलिए सारी रात तुम स्वप्न देखते हो। लेकिन यदि तुम दिन को फिर से जी सको तो स्वप्न गिर जाएंगे, और एक दिन आ जाता है जब अचानक वहा स्वप्न नहीं बनते। जब स्वप्न नहीं होते, तो पहली बार तुम स्वाद लेते हो कि निद्रा कैसी होती है।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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