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________________ जो कुछ बुरा है, असुंदर है, फेंक दिया गया है अचेतन में क्योंकि अहंकार उसकी ओर देखना ही नहीं चाहता है। सारे दुख भुला दिए गए हैं और सारी खुशी याद रखी गयी है। तुम खुशी को संजोए रहते हो और भूलते जाते हो दुखों को। यह चुनाव होता है। इसलिए बाद में हर कोई कहता है कि बचपन स्वर्ग था, क्योंकि तुमने वह सब भुलाने की कोशिश की है जो बुरा था। तुम्हारा बचपन जैसा कि तुम्हें याद है वह सत्य नहीं, वह मनगढ़ंत होता है। वह अहंकार द्वारा निर्मित कल्पित कथा है। इसलिए यदि तुम याद करते हो तो तुम याद करोगे खुशी देने वाली चीजों को, दुख देने वाली चीजों को नहीं। यदि तुम फिर जीते हो, तो तुम जीयोगे समग्र को –सुख, दुख-सब कुछ है। और पुन: जीना होता क्या है? फिर से जीना है, फिर से बच्चा बन जाना, बच्चे को बगीचे में दौड़ते हुए नहीं देखना, बल्कि दौड़ता हुआ बच्चा ही बन जाना। द्रष्टा मत बनो -वही हो जाओ। ऐसा संभव है क्योंकि बच्चा अभी भी अस्तित्व रखता है तुममें, वह हिस्सा होता है तुम्हारा। परत -दर-परत, वह सब जिसे तुमने जीया है अस्तित्व रखे रहता है तुममें। तुम बच्चे थे, वह मौजूद है। फिर तुम युवा हुए, वह मौजूद है। फिर तुम वृद्ध हो गए, वह मौजूद है। हर चीज वहां है, पर्त के ऊपर पर्त। तुम काट दो पेडू के तने को और पर्त होती है वहा। गहराई में एकदम केंद्र में तुम पाओगे पहली पर्त, जब वृक्ष बहुत छोटा –सा पौधा था। पहली पर्त होती है वहां, दूसरी पर्त होती है वहां। तुम गिन सकते हो वर्ष, क्योंकि हर वर्ष है एक पर्त और वृक्ष संचय करता है। तुम गिन सकते हो वृक्ष की आयु के वर्ष कि कितना पुराना है। केवल वृक्ष की ही नहीं, बल्कि पत्थरों, चट्टानों की भी पर्ते होती हैं। हर चीज एक संचित घटना होती है। तुम पहले बीज थे जो घटित हुआ तुम्हारी मा की गर्भ में। अभी भी वह मौजद है वहां। और फिर इसके बाद हर रोज लाखों पर्ते जड़ती गयीं, हजार बातें घटती रहीं। वे सभी वहा हैं, संचित। तुम फिर वही हो सकते हो, क्योंकि तुम वह थे। तुम्हें बस कदम पीछे लौटाने हैं। तो आजमाओ फिर से जीने को। प्रति-प्रसव है अतीत को फिर से जीना। तुम बंद कर लेना अपनी आंखें, लेट जाना और पीछे की तरफ लौट चलना। तम इसे आजमा सकते हो सीधे -सरल रूप से। यह बात तम्हें उसके सारे ढंग का पता देगी। हर रात तुम सो सकते हो बिस्तर पर और पीछे सुबह की ओर लौट सकते हो। बिस्तर पर लौटना अंतिम बात है -उसे पहली बात बना लेना, और अब पीछे की ओर लौट चलना। लेटने से पहले तुमने क्या किया था? तुमने एक प्याला दूध पीया था, उसे फिर से पीयो, फिर से जीयो। उसके पहले पत्नी के साथ झगड़ा किया था, उसे फिर से घटने दो भीतर। मूल्यांकन मत करना क्योंकि अब मूल्यांकन करने की कोई जरूरत नहीं है। वह घट चुका है। मत कहना अच्छा या बुरा, मूल्यांकन को मत लाना बीच में। तुम तो बस फिर से जीयो, वह घट चुका है। तुम पीछे की ओर जाओ. एकदम सुबह, जब एलार्म घड़ी ने तुम्हें जगाया, फिर से सुनो उसे। इसी तरह करते चलो और कोशिश करो दिन की हर घड़ी को जीने की, समय की घड़ी को खोलते हुए। तुम बहुत ज्यादा ताजा अनुभव करोगे
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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