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________________ पतंजलि कहते हैं कि समाधि निद्रा की भांति ही होती है, परम आनंद निद्रा की ही भाति होता है, केवल एक अंतर है निद्रा अचेतन है और समाधि चेतन है। निद्रा सर्वाधिक सुंदर घटनाओं में से है, लेकिन तुम कभी सोए नहीं क्योंकि तुम निरंतर इतने निर्विरोध रूप से स्वप्न देख रहे हो । सारी रात में लगभग आठ आवर्तन होते हैं स्वप्न के और प्रत्येक आवर्तन बना रहता करीब-करीब चालीस मिनट तक। यदि तुम सोते हो आठ घंटे तो आठ आवर्तन तो स्वप्न के ही होते हैं और हर एक स्वप्न आवर्तन बना रहता है चालीस मिनट तक दो स्वप्नों के बीच तुम्हारे पास केवल बीस मिनट होते हैं, और वे भी कोई बहुत गहरे नहीं होते क्योंकि कोई दूसरा स्वप्न तैयार हो रहा होता है। एक स्वप्न समाप्त होता है, अभिनेता जा चुके होते हैं, पर्दे के पीछे, लेकिन वहां बहुत ज्यादा सरगरमी होती है क्योंकि वे तैयार हो रहे होते हैं, अपने चेहरे पोत रहे होते हैं और अपने कपड़े बदल रहे होते हैं। वे तैयार हो रहे होते हैं और जल्दी ही परदा उठ जाएगा; उन्हें आना होगा। तो जब दो स्वप्नों के बीच बीस मिनट का अंतराल तुम्हें दिया जाता है तो वह भी कोई बहुत ज्यादा शांतिपूर्ण नहीं होता है। पीछे तलघर छिपा है. तैयारी चल रही होती है। यह बात तो दो युद्धों के बीच की शाति जैसी ही होती है पहला विश्वयुद्ध, दूसरा विश्वयुद्ध, और दोनों के बीच की शाति । लोगों ने उन्हें समझा शांतिपूर्ण दिनों की भाति वे थे नहीं। वे हो नहीं सकते थे। वरना कैसे तुम तैयार हो सके - दूसरे विश्वयुद्ध के लिए? वे शांतिपूर्ण दिन नहीं थे अब उन्होंने ढूंढ लिया है एक सही शब्द, वे इसे कहते हैं 'शीत युद्ध' उग्र गर्म युद्ध होता है, और दो युद्धों के बीच होता है शीत युद्ध, यही है पर्दे के पीछे की तैयारी। - - दो स्वप्न - चक्रों के बीच होता है बीस मिनट का अंतराल; वह किसी मध्यांतर की भांति होता है। हर चीज तैयार हो रही होती है और तुम भी तैयार हो रहे होते हो यह कोई गैर सक्रियता नहीं होती, यह होती है बेचैन सक्रियता । जब तुम दोबारा जीते हो सारे दिन को, तो स्वप्न ठहर जाते हैं। तब तुम बहुत ही अतल गहराई में जा पड़ते हो। तुम गिरते जाते और गिरते जाते और गिरते जाते हो जैसे कि कोई पंख किसी अ शून्य में गिर रहा हो – ऐसा ही होता है। इसका बड़ा सौंदर्य होता है, लेकिन यह तभी होता है जब तुम पीछे दिन में उतरते हो। यह उसके पूरे ढर्रे – ढांचे को जानने मात्र के लिए है, फिर तुम ऐसा कर सकते हो तुम्हारे पूरे जीवन भर तक। ठीक उस घड़ी तक लौट जाओ जब तुम चीखे थे और तुम पैदा हुए थे। ध्यान रहे, उसे फिर से जीना होता है, स्मरण नहीं करना होता है- क्योंकि कैसे तुम स्मरण कर सकते हो? और फिर से चीख सकते हो वह पहली चीख - जिसे जैनोव कहता है आदिम चीख, प्राइमल स्कीम। तुम फिर से चीख सकते हो जैसे कि तुम फिर से जन्मे हो जैसे कि तुम फिर से मां के गर्भ मार्ग से निकलते बच्चे बन हुए
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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