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________________ चीजें चुराने लगो। तुम मुसीबत खड़ी कर सकते हो। तो कृपया छोड़ दो ऐसा खयाल।' लेकिन उस चोर ने तो बहुत आग्रह किया। वह बोला, 'एक साल के लिए मैं छोड़ दूंगा चोरी, लेकिन मुझे चलना तो जरूर है। और मैं वादा करता हं आपसे कि एक साल तक मैं किसी की एक भी चीज नहीं चुराऊंगा।' एकनाथ ने मान ली बात। लेकिन एक हफ्ते के भीतर ही तकलीफ शुरू हो गई और तकलीफ यह थी. लोगों की चीजें गायब होने लगीं। और ज्यादा ही रहस्यमयी बात थी क्योकि कोई चुरा नहीं रहा था उन्हें-चीजें गायब हो जाती किसी के झोले से और कुछ दिनों बाद वे मिल जाती किसी और के झोले में। जिस आदमी के झोले में वे मिलती वह कहता, 'मैंने कुछ नहीं किया है। मैं सचमुच ही नहीं जानता कि ये चीजें कैसे आ गई हैं मेरे झोले में!' एकनाथ को शक हुआ, इसलिए एक रात उन्होंने दिखावा किया कि वे सोए हुए हैं लेकिन वे जागे हुए थे, वे निगरानी करते थे। चोर आया करीब आधी रात को, मध्यरात्रि में, और वह एक व्यक्ति की पेटी से दूसरे व्यक्ति की पेटी में चीजें रखने लगा। एकनाथ ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया और बोले, 'क्या कर रहे हो तुम? और तुमने तो वादा किया था। वह चोर बोला, 'मैं अपने वादे के अनुसार चल रहा हूं। मैंने एक भी चीज नहीं चुराई है लेकिन यह मेरी पुरानी आदत है। आधी रात को यदि मैं कोई खुराफात नहीं करता, तो असंभव होता है मेरे लिए सोना। और एक साल तक न सोऊ? आप तो करुणामय हैं। आपको तो मुझ पर करुणा होनी चाहिए। और मैं चुरा नहीं रहा हूं; चीजें तो फिर से मिल जाती हैं। वे कहीं जाती तो नहीं, केवल एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच जाती हैं। और इसके अलावा यह भी कि एक साल बाद मुझे चोरी करनी होगी तो यह एक अच्छा खासा अभ्यास भी रहेगा।' आदत तुम्हें कुछ चीजें करने को मजबूर कर देती है : तुम उसके शिकार हो जाते हो। हिंदू इसे कहते हैं – कर्म का सिद्धांत : हर वह कार्य जिसे तुम दोहराते हो, या कि हर एक विचार-क्योंकि विचार भी मन का एक सूक्ष्म कर्म होता है –और ज्यादा मजबूत हो जाता है। तब तुम उसकी पकड़ में होते हो। तब तुम कैद हो जाते हो आदत में। तब तुम एक कैदी का, एक गुलाम का जीवन जीते हो। और कारा बड़ी सूक्ष्म होती है, वह तुम्हारी आदतों की और संस्कारबद्धताओं की और कर्मों की होती है जिन्हें कि तुम करते हो। वह तुम्हारे शरीर के चारों ओर बनी रहती है। और तुम उसमें उलझे रहते हो। लेकिन तुम सोचते जाते हो और स्वयं को धोखा देते जाते हो कि तुम कर रहे हो ऐसा। जब तुम क्रोधित होते तो तुम सोचते हो कि तुम कर रहे हो यह बात। तुम उसका तर्क बैठाते और तुम कहते कि स्थिति की मांग ही ऐसी थी मुझे क्रोध करना ही था, वरना तो बच्चा भटक जाएगा; यदि मैं क्रोध नहीं करता तो चीजें गलत हो जातीं, तो आफिस अस्त -व्यस्त हो जाता, तो फिर नौकर सुनते ही नहीं। मुझे क्रोध करना ही था चीजों को संभालने के लिए, बच्चे को अनुशासित करने के लिए। पत्नी को ठीक स्थिति में लाने को मुझे क्रोध करना ही था। ये बुद्धि के हिसाब हैं। इसी तरह तुम्हारा अहंकार सोचता चला जाता है कि तुम फिर भी मालिक ही हो, लेकिन तुम होते नहीं। क्रोध
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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