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________________ आता है पुराने ढांचों के कारण, अतीत से। और जब क्रोध आता है तो तुम उसके लिए कोई बहाना ढूंढने की कोशिश करते हो। मनोवैज्ञानिक प्रयोग करते रहे हैं और वे उन्हीं तथ्यों त जिन तक पूरब का गुह्य मनोविज्ञान पहुंचा है : आदमी अधीन है, मालिक नहीं। मनोवैज्ञानिको ने लोगों को पूरे एकांत में रख दिया हर संभव सुविधा के साथ। जिस चीज की जरूरत थी उन्हें दे दी गई, लेकिन उनका दूसरे मनुष्यों के साथ कोई संपर्क नहीं रहा। वे बिलकुल अलग – थलग जीए वातानुकूलित कोठरी में - कोई काम नहीं, कोई अड़चन नहीं, कोई समस्या नहीं, लेकिन वही आदतें चलती चली गयीं। एक सुबह, अब कोई कारण न था -क्योंकि सुविधा पूरी हो गई थी, कोई चिंता न थी, क्रोधित होने का कोई बहाना नही-और आदमी अचानक पाता कि क्रोध उठ रहा है। वह तुम्हारे भीतर होता है। कई बार अचानक बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के ही उदासी चली आती है। और कई बार व्यक्ति प्रसन्नता अनुभव करता है, कई बार वह अनुभव करता है सुखी, आनंदित। सारे सामाजिक संबंधों से छूटा हुआ आदमी, पूरी सुविधाओं में अलग पड़ा हुआ, हर जरूरत पूरी होने के साथ सारी भावदशाओं के बीच से गुजरता जिनसे कि तुम संबंधों में गुजरते हो। इसका अर्थ हुआ कि कोई चीज भीतर से आती है और तुम उसे टाग देते हो किसी दूसरे व्यक्ति पर। यह तो मात्र एक बुद्धि की व्याख्या होती है। तुम अच्छा अनुभव करते, तुम बुरा अनुभव करते, और ये अनुभूतियां तुम्हारे अचेतन से फूट पड़ रही होती, तुम्हारे अपने अतीत से। तुम्हारे सिवाय कोई और जिम्मेदार नहीं। कोई तुम्हें क्रोधी नहीं बना सकता। और कोई तुम्हें प्रसन्न नहीं बना सकता। तुम प्रसन्न होते हो अपने से ही। तुम क्रोधित होते हो अपने से, और तुम उदास होते हो अपने से ही। यदि तुम इस बात को नहीं जान लेते, तो तुम सदा गुलाम बने रहोगे। स्वयं पर मालकियत तब मिलती है, जब कोई जान लेता है कि मैं पूरी तरह जिम्मेदार हूं जो भी मुझे घटित हुआ है, बेशर्त तौर पर। मैं जिम्मेदार हू पूसई तरह। शुरू में यह बात तुम्हें बहुत ज्यादा उदास और दुखी कर देगी। क्योंकि यदि तुम जिम्मेदारी दूसरे पर फेंक सकते हो, तो तब तुम ठीक अनुभव करते हो कि तुम गलत नहीं। क्या कर सकते हो तुम जब पत्नी इतने गंदे ढंग से व्यवहार कर रही हो? तुम्हें क्रोध करना ही पड़ता है। लेकिन याद रखना ठीक से, पत्नी गंदे ढंग का व्यवहार कर रही होती है उसकी अपनी संरचना के कारण। वह तुम्हारे प्रति अप्रिय व्यवहार नहीं करती है। यदि तुम न होओगे मौजूद तो वह अप्रिय व्यवहार करेगी बच्चे के साथ। यदि बच्चा वहा नहीं होगा तो वह बरस पड़ेगी प्लेटों पर, वह फेंक ही देगी उन्हें जमीन पर। उसने तोड़ दिया होगा रेडियो। उसे करना ही था कुछ न कुछ, उपद्रव उठ रहा था। यह मात्र एक संयोग था कि तुम अखबार पढ़ते पकड लिए गए और वह बिगड़ गई तुम पर। यह मात्र एक संयोग था कि तुम मौजूद थे गलत क्षण में। तुम इस कारण क्रोधित नहीं होते कि पत्नी दुष्ट है, हो सकता है उसने कोई स्थिति बना दी हो, बस इतना ही। उसने शायद तुम्हें कोई संभावना दे दी हो; लेकिन क्रोध कुलबुला रहा था। यदि पत्नी वहां
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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