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________________ J से क्रोधित होने की तो तुमने दोहरा दिया उसे तुम ज्यादा ऊर्जा दे देते हो क्रोध को क्रोध की भावदशा को, तुमने उसे और बद्धमूल कर दिया, तुमने उसे सींच दिया। अब आज तुम फिर दोहराओगे उसे ज्यादा शक्ति के साथ। तब कल तुम फिर शिकार हो जाओगे आज के प्रत्येक कार्य जिसे तुम करते हो या जिसके बारे में सोचते भी हो, उसके अपने ढंग होते हैं, फिर-फिर आ बनने के, क्योंकि वह एक मार्ग निर्मित कर देता है तुम्हारे अंतस में। वह तुमसे ऊर्जा को सोखने लगता है। तुम क्रोधित हो जाते हो, फिर वह भावदशा चली जाती है और तुम सोचते हो कि तुम अब क्रोधित नहीं रहे; तब तुम सार को चूक जाते हो। जब भावदशा जा चुकी होती है तो कुछ नहीं घटा होता; केवल चक्र घूम गया होता है और चक्र का जो आरा ऊपर था, नीचे चला गया होता है। कुछ क्षण पहले क्रोध मौजूद था सतह पर क्रोध अब नीचे चला गया अचेतन में, तुम्हारी अंतस सत्ता की गहराई में वह उसका समय फिर से आने की प्रतीक्षा करेगा। यदि तुम उसके अनुसार चलते हो, तो तुम उसे सहारा दे मजबूत कर देते हो, तब तुमने फिर उसके जीवन के लिए नाम और समय लिख दिया होता है। तुम उसे फिर शक्ति दे देते हो, ऊर्जा दे देते हो। वह स्पंदित हो रहा है, मिट्टी के नीचे पड़े बीज की भांति प्रतीक्षा कर रहा है सही अवसर और मौसम की, जब वह प्रस्फुटित होगा। हर कार्य स्व- सातत्य पाने वाला होता है, हर विचार स्व - सातत्यवान है। यदि एक बार तुम उसे सहयोग देते हो, तो तुम उसे ऊर्जा दे रहे होते हो। देर अबेर वह बात एक आदत का रूप ले लेगी । तुम करोगे उसे और तुम कर्ता न रहोगे, तुम करोगे उसे केवल आदत के जोर के कारण ही। लोग कहते हैं कि आदत द्वितीय स्वभाव होती है। यह कोई अतिशयोक्ति नहीं। इसके विपरीत यह एक न्यूनोक्ति है। वस्तुत: आदत अंत में बन जाती है पहला स्वभाव, और स्वभाव हो जाता है दूसरे नंबर की बात स्वभाव बन जाता है किताब के परिशिष्ट की भांति या किसी किताब की टिप्पणियों की भांति, और आदत बन जाती है मुख्य भाग, किताब का मुख्य अंग | - तुम जीते हो आदत के द्वारा, उसका अर्थ होता है कि आदत मूल रूप से तुम्हारे द्वारा जीती है। आदत स्वयं बनी रहती है, उसकी अपनी ही ऊर्जा होती है। निस्संदेह वह ऊर्जा लेती है तुमसे, लेकिन तुमने सहयोग दिया होता है अतीत में, तुम सहयोग दे रहे होते हो वर्तमान में। धीरे धीरे आदत मालिक बन जाती है और तुम केवल एक नौकर बने रहोगे, एक छाया। आदत देगी निश्चित आदेश, आशा देगी, और तुम रहोगे मात्र एक आज्ञाकारी नौकर । तुम्हें अनुसरण करना होगा उसका। ऐसा हुआ कि एक हिंदू रहस्यवादी संत एकनाथ जा रहे थे तीर्थयात्रा को तीर्थयात्रा चलने वाली थी कम से कम एक वर्ष तक, क्योंकि उन्हें दर्शन करना था देश के सारे पवित्र स्थलों का निस्संदेह एकनाथ के संग होना एक सौभाग्य था, तो बहुत सारे लोग, हजारों लोग, यात्रा कर रहे थे उनके साथ। शहर का चोर भी आया और बोला, मैं जानता हूं कि मैं एक चोर हूं और आपके धार्मिक दल का सदस्य होने के योग्य नहीं हूं लेकिन मुझे भी अवसर दें में चलना चाहूंगा तीर्थयात्रा के लिए।' एकनाथ ने कहा, 'यह बात कठिन होगी, क्योंकि एक वर्ष कुछ लंबा समय है और हो सकता है तुम लोगों की
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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