SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदमी चिपकता है जीवन से। जितने ज्यादा प्रसन्न तुम होते हो, उतने ज्यादा तुम तैयार रहोगे किसी भी क्षण जीवन छोड़ने को -किसी भी क्षण बिना किसी जुड़ाव -चिपकाव के तुम उतार सकते हो अपने जीवन को पुराने पड़ गए कपड़ों की भांति ही, उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। केवल इतना ही नहीं, यदि तुम सचमुच ही प्रसन्नता से भरे होते हो और मृत्यु द्वार खटखटाती है, तो तुम उसका स्वागत करोगे। तुम आलिंगन में लोगे मृत्यु को, और उसी बात से तुम पार हो जाओगे मृत्यु के। मुझे फिर से कहने दो मृत्यु आती है और खटखटाती है तुम्हारा द्वार और यदि तुम भयभीत होते हो और तुम किन्हीं कोनों में जा छुपते हो, अलमारियों में, और तुम रोते -चिल्लाते हो और तुम थोड़ा और जीना चाहते हो, तो तुम शिकार हुए। तुम्हें बहुत बार मरना पड़ेगा। एक भयभीत आदमी हजारों बार मरता है। लेकिन यदि तुम द्वार खोल सको, मृत्यु का स्वागत करो मित्र की भांति, मृत्यु का आलिंगन करो, उसी में तुम पार हो गए मृत्यु के। अब तुम मृत्यु विहीन हुए। पहली बार अब तुम उस जीवन को उपलब्ध करते हो जिसमें दुख नहीं, वह जीवन जिसकी बात जीसस करते हैं समृद्ध जीवन; वह जीवन जिसकी बात बुद्ध कहते हैं आनंदमय जीवन, निर्वाणमय जीवन; वह जीवन जिसकी बात पतंजलि कह रहे हैं : शाश्वत, समय और स्थान के पार का, कालातीत। दुख अपना प्रतिकारक निर्मित करता है। एक बार तुम जाल में पकड़ लिए जाते हो, तो और तुम चिपकोगे जीवन से, और ज्यादा ही दुखी हो जाओगे तुम। क्योंकि चिपके रहना स्वयं ही दुख निर्मित करता है, चिपके रहना ज्यादा हताशाएं निर्मित करता है। जब तुम किसी चीज से नहीं चिपकते, तब यदि वह खो जाती है तो तुम दुखी नहीं होते हो। जब तुम चिपकते हो किसी चीज से और वह खो जाए, तो तम पागल हो जाते हो। जितना ज्यादा तम चिपकते हो जीवन से और- और तुम पाओगे हर दिन कि तुम दुखी हो रहे हो।. पोड़ा और जुड़ती जा रही है तुम्हारे अस्तित्व से। एक घड़ी आती जब तुम और कुछ नहीं होते सिवाय पीड़ा के, एक चीखती हुई पीड़ा। और जब ऐसा घटता है, तो तुम ज्यादा चिपकते हो। यह एक दुश्चक्र होता है। जरा सारी घटना पर ध्यान देना। क्यों चिपक रहे होते हो तुम? तुम चिपक रहे होते हो क्योंकि तुम अभी तक जी नहीं पाए हो। जीवन के साथ चिपकना ही दर्शाता है कि तुम अभी जीए ही नहीं, तुमने एक मुरदा जीवन जीया है, अभी तक तुम जीवन के वरदान का आनंद मनाने योग्य नहीं हुए; तुम असंवेदनशील रहे हो, तुमने एक बंद जीवन जीया है। तुम छू नहीं पाए फूलों को, आकाश को, पक्षियों को। तुम जीवन की नदिया के संग बह नहीं पाए, तुम रुके हो। क्योंकि तुम जम गए और तुम जी नहीं सकते, तो तुम दुखी हो। तुम्हारे दुखी होने के कारण तुम मृत्यु से भयभीत हो क्योंकि यदि मृत्यु बिलकुल अभी आ जाए तो -और तुमने अभी तक जीवन जीया ही न हो, तो तुम मारे गए। एक पुरानी कथा है। उपनिषदों के काल में एक बड़ा राजा हुआ, ययाति। उसका मृत्यु-काल आ गया। वह सौ वर्ष का था। जब मौत आ गई तो वह रोने -चीखने लगा। मृत्यु ने कहा, 'यह बात तुम्हें शोभा
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy