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________________ नहीं देती, एक बड़े सम्राट हो, बहादुर आदमी हो। क्या कर रहे हो तुम? क्यों तुम एक बच्चे की भांति रो रहे हो, चीख रहे हो? क्यों तेज अंधड़ में कंपते पत्ते जैसे कंप रहे हो? क्या हुआ है तुम्हें?' ययाति ने कहा, 'तुम आ गई हो और मैं तो अभी तक जी नहीं पाया। कृपया मुझे थोड़ा समय और दो ताकि मैं जी सकू। मैंने बहुत चीजें कीं, मैं बहुत से युद्धों में लड़ा। मैंने बहुत धन इकट्ठा किया, मैंने बड़ा राज्य बना लिया। मैंने अपने पिता की संपत्ति ज्यादा बढ़ा दी, लेकिन मैं तो जीया नहीं। वास्तव में, जीने के लिए समय ही न रहा था, और तुम आ गईं। नहीं, यह तो अन्याय हुआ। तुम मुझे थोड़ा और समय दो।' मृत्यु ने कहा, 'लेकिन मुझे किसी न किसी को तो ले जाना ही है। ठीक है कोई इंतजाम कर दो। यदि तुम्हारे बेटों में से कोई तुम्हारे लिए मरने को राजी है, तो मैं ले जाऊंगी उसे।' ययाति के सौ बेटे थे, हजारों पत्नियां थीं। उसने बुला भेजा अपने बेटों को। बड़े बेटों ने तो बात ही नहीं सुनी। वे स्वयं ही चालाक हो गए थे और वे उसी फंदे में पड़े थे। एक, जो सबसे बड़ा था, सत्तर वर्ष का था। वह कहने लगा, 'लेकिन मैं भी तो नहीं जीया। मेरा क्या होगा? आप कम से कम सौ साल तो जीए, मैं तो केवल सत्तर वर्ष जीया। मुझे थोड़ा और अवसर मिलना चाहिए।' सब से छोटा, जो अभी सोलह या सत्रह साल का ही था, वह आया, उसने अपने पिता के पांव छुए और वह बोला, 'मैं तैयार हूं।' मृत्यु तक को करुणा आयी इस लड़के पर। मृत्यु जानती थी कि वह निर्दोष था, संसार के रंग-ढंग की होशियारी नहीं, नहीं जानता कि वह क्या कर रहा था। मृत्यु लड़के के कान में फुसफुसा कर कहने लगी, 'क्या कर रहे हो तुम? अरे मूड, अपने पिता की ओर देख। सौ साल की आयु में मरने को तैयार नहीं है वह और तुम तो केवल सत्रह वर्ष के हो! तुमने तो अभी जीवन का स्पर्श तक नहीं किया।' लड़का कहने लगा, 'जीवन समाप्त हो गया! क्योंकि मेरे पिता सौ वर्ष की अवस्था में अनुभव करते हैं कि अभी भी वे जी नहीं पाए हैं, तो सार ही क्या? यदि मैं भी सौ वर्ष जी लूं तो बात वही होने वाली है। बेहतर है कि मैं उन्हें मेरा जीवन जीने दूं। यदि वे सौ वर्षों में नहीं जी सके, तब तो सारी बात ही व्यर्थ हुई।' बेटा मर गया और पिता सौ वर्ष और जीया। फिर मौत ने दवार खटखटाया और उसने रोनाचिल्लाना शुरू कर दिया। वह कहने लगा, 'मैं तो बिलकुल भूल ही गया था। मैं तो फिर धन -दौलत बढ़ा रहा था, राज्य बढ़ा रहा था, और सौ साल बीत गए जैसे स्वप्न में ही। तुम फिर से यहां आ गई हो और मैं जीया ही नहीं।' और यह बात चलती चली गई। मौत फिर –फिर आती और वह एक न एक बेटे को ले जाती। ययाति एक हजार वर्ष और जीया। सुंदर है कहानी, लेकिन वह बात फिर घटी। हजार वर्ष बीत गए और मृत्यु आ गई। ययाति कांप रहा था और रो रहा था और चीख रहा था। मृत्यु बोली, 'लेकिन अब तो बहुत हुआ। तुम हजार वर्ष जी लिए और तुम फिर कहते हो कि तुम जी ही नहीं पाए!' ययाति ने कहा, 'कोई कैसे अभी और यहीं जी सकता है? मैं सदा स्थगित करता हूं : कल और कल। और कल? -अकस्मात तुम मौजूद हो जाती
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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