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________________ लेकिन आदमी तो चिपका रहता है जीवन से क्योंकि आदमी दुखी है। तुमने दूसरी ही बात सोची होगी, कि किसी दुखी आदमी को जीवन से नहीं चिपकना चाहिए। ऐसा है ही क्या जो जीवन ने दिया है उसे? क्यों चिपकेगा वह? बहुत बार ऐसा विचार आया होगा तुम्हें, किसी भिखारी को सड़क पर देख गंदे नाले में पड़ा हुआ, अंधा, कोढ़ से पीड़ित, अपंग, यह देख तुम्हारे मन में जरूर ऐसा विचार आया होगा, यह आदमी क्यों जीवन से चिपका जा रहा है? अब वहां बचा ही क्या है? यह आत्महत्या क्यों नहीं कर सकता और खत्म ही क्यों नहीं हो जाता?' मुझे याद है मेरे बचपन में एक भिखारी आया करता था, जिसकी टांगें नहीं थीं। वह एक छोटे से ठेले, एक हाथगाड़ी में पड़ा रहता जिसे उसकी पत्नी चलाती थी। वह अंधा था, सारा शरीर ही एक बदबू भरी लाश था। तुम उसके पास न आ सकते थे। वह असाध्य कोढ़ से पीड़ित था-लगभग मृत, निन्यानबे प्रतिशत मरा ही हुआ था, केवल एक प्रतिशत जीवित था, फिर भी किसी तरह सांस ले रहा था। मैं उसे कुछ-न-कुछ दिया करता। एक दिन मैंने पूछा उससे, मात्र जिज्ञासावश ही, 'क्यों जी रहे हो तुम? किसलिए? तुम आत्महत्या क्यों नहीं कर लेते, और इतने दुखी जीवन से छुटकारा ही क्यों नहीं पा लेते?' निस्संदेह वह तो क्रोध में आ गया। वह बोला, 'क्या कह रहे हैं?' क्रोध में था वह। वह मुझे मारना चाहता था अपने हाथ में आयी किसी भी चीज से। ऐसा लग सकता है तुम्हें कि एक दुखी आदमी को आत्महत्या कर लेनी चाहिए, या कम से कम सोचना तो चाहिए ही जीवन समाप्त करने के बारे में। लेकिन कभी नहीं-दुखी आदमी कभी नहीं सोचता इस बारे में। वह सोच ही नहीं सकता। दुख अपनी क्षतिपूर्ति कर लेता है, दुख अपना प्रतिकारक बना लेता है। स्वर्ग है प्रतिकारक- 'कल हर चीज बिलकुल ठीक हो जाने वाली है। यह तो केवल थोड़े से और धैर्य की बात ही है।' भिखारी सदा भविष्य में ही रहता। और तुम भिखारी हो यदि तुम भविष्य में रहते हो तो। यही है निर्णय करने की कसौटी कि कोई आदमी सम्राट है या भिखारी : यदि तुम भविष्य में रहते हो तो तुम भिखारी हुए; यदि तुम रहते हो बिलकुल यहीं, अभी तो तुम एक सम्राट हुए। वह आदमी जो आनंदित होता है, यहीं और अभी जीता है। वह भविष्य की फिक्र नहीं करता। भविष्य का तो अर्थ होता है ना -कछ; भविष्य का उसके लिए कोई अर्थ नहीं। यही क्षण है एकमात्र अस्तित्व। लेकिन यह संभव है केवल आनंदपूर्ण व्यक्ति के लिए। दुखी व्यक्ति के लिए यही क्षण एकमात्र अस्तित्व कैसे हो सकता है? तब तो यह बहुत दूभर होगा-असहनीय, असंभव। उसे निर्मित करना पड़ता है भविष्य। उसे कहीं-न-कहीं, किसी तरह स्वप्न निर्मित करना पड़ता है, दुख का प्रतिकार करने के लिए। जितना ज्यादा गहरा होता है दुख, उतनी ज्यादा होती है आशा। आशा एक क्षतिपूर्ति है। एक दुखी व्यक्ति कभी नहीं करता आत्महत्या, और एक दुखी आदमी कभी नहीं आता धर्म के पास। दुखी
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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