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________________ कैसे बरदाश्त कर सकते हो तुम? एकमात्र तरीका है आशा, सभी आशाओं के विपरीत भी आशा, स्वप्नों से भरी हुई आशा स्वप्न ही एक सांत्वना बन जाता है स्वप्न तुम्हारे दुख को आज धुंधला कर देता है। स्वप्न तो शायद पूरा न हो, बात इसकी नहीं, लेकिन कम से कम आज तुम स्वप्न तो देख सकते हो और उस मौजूद पीड़ा को सह सकते हो। तुम स्थगित कर सकते हो। तुम्हारी इच्छाएं अपूर्ण बनी भविष्य में झूलती ही जा सकती हैं। लेकिन यह आशा ही कि कल आ रहा होगा और हर चीज ठीक हो जाएगी, तुम्हारे जीने में बने रहने में तुम्हारी मदद करती है। जितना ज्यादा दुखी होता है आदमी, उतना ज्यादा आशावान होता है; जितना ज्यादा प्रसन्न होता है आदमी उतना ज्यादा निराश होता है। इसीलिए भिखारी कभी नहीं त्यागते संसार को कैसे त्याग सकते हैं वे केवल बुद्ध, महावीर - महलों में पैदा हुए राजकुमार-संसार त्याग देते हैं। वे निराश होते हैं; आशा करने को उनके पास कुछ है नहीं, हर चीज मौजूद है और फिर भी दुख है। एक भिखारी आशा कर सकता है क्योंकि उसके पास कुछ है नहीं । 'जब हर चीज होती है तो स्वर्ग ही स्वर्ग होगा और हर चीज प्रसन्नता बन जाएगी ।' उसे प्रतीक्षा करनी पड़ती है और कल के घटित होने के लिए आयोजन करने पड़ते हैं। बुद्ध के लिए तो कुछ बचा ही नहीं। हर चीज उपलब्ध है; वह सब जो संभव है पहले से मौजूद ही है तो आशा कैसे करें? किसके लिए आशा करें? इसीलिए मैं फिर फिर जोर देता हूं कि केवल एक समृद्ध समाज में ही धर्म की संभावना होती है। एक दरिद्र समाज धार्मिक नहीं हो सकता है। दरिद्र समाज तो साम्यवादी बनेगा ही, क्योंकि साम्यवाद कम्मुनिज्म कल की ही, स्वर्ग की ही आशा है कल हर चीज समान रूप से बंटने वाली है। कल तो ऐसा होगा ही कि कोई अमीर न होगा और कोई गरीब न होगा, कल होगी क्रांति सूर्य उदय होगा और चीज सुंदर हो जाएगी। अंधेरा तो केवल आज ही है। तुम्हें इसे सहना है और कल के लिए लड़ना है।' दरिद्र समाज कम्युनिस्ट होगा ही । — केवल एक धनी समाज ही निराशा अनुभव करने लगता है। और जब तुम जीवन के प्रति निराशा अनुभव करने लगते हो, तो सच्ची आशा की संभावना बनती है। जब तुम जीवन के प्रति इतने हताश हो जाते हो कि तुम आत्महत्या करने के किनारे पर ही होते हो। तुम तैयार होते हो इस सारे दुख को छोड़ने के लिए संकट की उस घड़ी में ही रूपांतरण संभव होता है। आत्मघात और साधना दो विकल्प हैं। जब तुम आत्मघात तक करने को तैयार होते हो, तभी तुम रूपांतरित होने को तैयार होते हो उससे पहले बिलकुल नहीं। जब तुम सारे जीवन को और उसकी सारी पीड़ाओं को छोड़ने के लिए राजी होते हो, केवल तभी होती है इसकी संभावना क तुम स्वयं को रूपांतरित करने के लिए तैयार हो सकते हो। रूपांतरण सच्चा आत्मघात है। यदि तुम अपने शरीर को मारते हो, तो वह सच्चा आत्मघात नहीं। तुम फिर एक और शरीर पा लोगे, क्योंकि मन तो पुराना ही बना रहता है। मन को मारना ही सच्ची आत्महत्या है, और योग इसी की तो बात करता है मन को मारना, परम आत्महत्या को उपलब्ध करना है। वहां से फिर लौटना नहीं होता ।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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