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________________ आंखों से अब ईश्वर नहीं देख रहा तुम्हारी ओर, बल्कि वहा एक उग्र जानवर एक कामुक पशु है। अम टूट गया, सपना बिखर गया। अब दुख प्रारंभ हुआ। और तुमने तो वादा किया था कि तुम सदा इस स्त्री से प्रेम करते रहोगे, स्त्री ने वादा किया था कि अगले जन्मों में भी वह तुम्हारी छाया बनी रहेगी। अब तुम छले गए हो तुम्हारे अपने वादों द्वारा, जाल में उलझ गए हो। अब कैसे तुम पीछे हट सकते हो? अब तुम्हें उसे चलाए ही चलना होगा। पाखंड, दिखावा, क्रोध प्रवेश कर जाते हैं। क्योंकि जब कभी भी तुम दिखावा करते हो, तो देर- अबेर तुम्हें गुस्सा आएगा ही, दिखावा बड़ा भारी बोझ होता है। अब तुम स्त्री का हाथ पकड़ते हो और उसे थामे रहते हो, लेकिन उससे तो बरन पसीना ही छूटता है और घटता कुछ नहीं है, कोई कविता नहीं, केवल पसीना ही। तुम उसे छोड़ना चाहते हो, लेकिन स्त्री को तो इससे चोट पहुंचेगी। वह भी हाथ छोड़ देना चाहती है, लेकिन वह भी सोचती हैं कि तुम्हें चोट लगेगी और प्रेमियों को तो हाथों को थामे ही रहना है ! तुम चूमते हो स्त्री को, लेकिन वहा सिवाय मुंह की बदबू के कुछ नहीं होता। हर बात असुंदर हो जाती है और तब तुम प्रतिक्रिया करते, तब तुम बदला लेते तब तुम दूसरे पर जिम्मेदारी डाल देते, तब तुम सिद्ध करना चाहते कि दूसरा अपराधी है। उसने कुछ गलत किया है या कि उसने तुम्हें धोखा दिया है, वह ऐसा होने का दिखावा करती रही है जैसी कि वह नहीं थी! और फिर चली आती है विवाह की सारी असुंदरता। ध्यान रहे, दुख को सुख जानना है जागरूकता का अभाव होना। आरंभ में यदि कोई चीज सुखदायी होती है और अंत में दुखदायी बन जाती है, तो ध्यान रहे कि यह बिलकुल शुरू से ही दुखपूर्ण थी; केवल जागरूकता के अभाव ने ही तुम्हें धोखा दिया है। किसी और ने धोखा नहीं दिया है तुम्हें दिया है तो जागरुकता के अभाव ने ही तुम्हें पर्याप्त होश न था चीजों को उस तरह देखने का जैसी कि वे थीं। अन्यथा, कैसे सुख बदल सकता था दुख में! यदि सचमुच ही सुख होता, तो जैसे-जैसे समय बीतता, तो वह और — और बड़ा सुख बन गया होता। होना तो उसे ऐसा ही चाहिए। तुम बोते हो आम के पेडू का बीज ज्यों-ज्यों वह बढ़ता है, तो क्या वह नीम के पेडू का फल बन जाएगा, कडुआ होगा? यदि पहले ही बीज आम का था, तो बनेगा आम का पेड़, आम वा विशाल वृक्ष । हजारों आम आएंगे उस पर। लेकिन यदि तुम लगाते हो आम का वृक्ष और अंत में वह हो जाता है का पेडू कडुआ, कदम कडुआ, तो क्या अर्थ होता है इसका ? इसका अर्थ है कि पेडू ने तुम्हें धोखा से आम के पेडू का बीज जान लिया था। नहीं दिया, बल्कि तुमने ही नीम के पेडू के बीज को भूल वरना, सुख तो और सुखदायी हो जाता है, प्रसन्नता और और प्रसन्नता होती जाती है, अंतत: वह आनंद का उच्चतम शिखर हो जाती है। लेकिन व्यक्ति को सजग रहना होता है, जब कि वह बीज बो रहा होता है। एक बार तुम बीज बो देते हो, फिर तुम पकड़ लिए जाते हो, क्योंकि तब तुम बदल नहीं सकते। तब तुम्हें फल पाना ही होगा और तुम फल पा रहे हो। -
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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