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________________ अविद्या है- अनित्य को नित्य समझना अशुद्ध को शुद्ध जानना पीड़ा को सुख और अनात्म को आत्म जानना। पतंजलि कहते, अविद्या क्या है?-जागरूकता का अभाव। और जागरूकता का अभाव क्या है? तुम उसे जानोगे कैसे? लक्षण क्या होते हैं? लक्षण ये हैं: 'अनित्य को शाश्वत समझ लेना.....।' जरा देखो चारों तरफ-जीवन एक प्रवाह है, हर चीज गतिमय है। हर चीज निरंतर गतिमान हो रही है, निरंतर परिवर्तित हो रही है। चारों ओर सभी चीजों का स्वभाव है परिवर्तन। परिवर्तन एकमात्र स्थायी चीज-जान पड़ता है। स्वीकार करो परिवर्तन को और हर चीज बदल जाती है। यह सागर की लहरों की भांति ही होता है। वे जन्मती, थोड़ी देर को वे बनी रहती, और वे फिर घुल जाती और मिट जाती। ऐसा लहरों की भांति ही होता है। तुम जाते हो सागर की ओर, तो क्या देखते हो तुम? तुम देखते हो लहरों को, मात्र सतह को। और फिर तुम वापस लौट आते हो और तुम कहते हो कि तुम देख आए समुद्र को और समुद्र सुंदर था। तुम्हारी खबर बिलकुल झूठ होती है। तुमने समुद्र को तो बिलकुल देखा ही नहीं; केवल सतह को, लहरदार सतह को देखा है। तुम तो केवल किनारे पर ही खड़े रहे। तुमने देखा समंद्र की ओर, लेकिन वह वस्तुत: समुद्र न था। वह केवल सर्वाधिक बाहर की परत थी, केवल एक सीमा जहां हवाएं लहरों से मिल रही थीं। जैसे कि तुम मुझसे मिलने आते और तुम देखते केवल मेरे कपड़ों को ही। फिर तुम वापस चले जाते हो और तुम कहते हो कि तुम मुझसे मिल लिए। यह ऐसा ही हुआ कि तुम मुझे देखने आए, और केवल घर भर में घूमे और बाहरी दीवारों को देखा, फिर वापस गए और कह दिया कि तुमने जान लिया है मुझे। लहरें होती हैं समुद्र में, समुद्र होता है लहरों में, लेकिन लहरें समुद्र नहीं हैं। वे तो सब से ज्यादा बाहर की हैं, समुद्र के केंद्र से, गहराई से सर्वाधिक दूरी की घटना। जीवन एक प्रवाह है, हर चीज बह रही है, परिवर्तित हो रही है दूसरे में। पतंजलि कहते हैं कि विश्वास करना कि यही जीवन है यह अविद्या है, यह जागरूकता का अभाव होना है। तुम बहुत बहुत दूर हो जाते हो जीवन से, केंद्र से, उसकी गहराई से। सतह पर परिवर्तन होता है, परिधि पर गति होती है, लेकिन केंद्र पर कोई चीज नहीं सरकती। कोई हलन-चलन नहीं, कोई परिवर्तन नहीं। यह तो ऐसे है, जैसे बैलगाड़ी का पहिया। पहिया चलता जाता और चलता ही जाता और चलता ही चला जाता, लेकिन केंद्र पर कोई चीज थिर बनी रहती। उस थिर ध्रुव पर पहिया घूमता रहता। पहिया तो शायद संसार भर में घूमता रहा होगा, लेकिन वह किसी ऐसी चीज पर घूम रहा था जो कि नहीं घूम रही थी। सारी गतिमयता निर्भर करती है शाश्वत पर, अगति पर।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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