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________________ जाते हैं क्रोमोसोम्स द्वारा, तुम्हारे शरीर के कोशाणुओ द्वारा। अब वैज्ञानिक कहते हैं कि एक कोशाणु मात्र करीब-करीब एक करोड़ संदेश ले आता है तुम्हारे लिए। वे उसी में रचे होते हैं। जब एक बच्चा गर्भ में आता है र तो दो कोशाण मिलते हैं, एक मां की ओर से और एक पिता की ओर से। दो क्रोमोसोम्स मिलते हैं। वे ले आते हैं लाखों-लाखों संदेश। वे नक्शे बन जाते हैं और बच्चा उन आधारभूत नक्शो-ढांचों से जन्मता है। वे दुगुने-चौगुने होते जाते हैं। इसी भांति शरीर बढ़ता जाता है। तुम्हारा सारा शरीर छोटे-छोटे अदृश्य कोशाणुओं से बना होता है, करोड़ों कोशाण होते हैं। और प्रत्येक कोशाणु संदेश लिए रहता है, जैसे कि प्रत्येक बीज संपूर्ण संदेश ले आता है संपूर्ण वृक्ष के लिए : कि किस प्रकार के पत्ते उसमें उगेंगे; किस प्रकार के फूल खिलेंगे इसमें; वे लाल होंगे या नीले होंगे, या कि पीले होंगे। एक छोटा-सा बीज सारा नक्शा लिए रहता है वृक्ष के संपूर्ण जीवन का। हो सकता है वृक्ष चार हजार साल तक जीए। चार हजार साल तक उसकी हर चीज वह छोटा-सा बीज लिए ही रहता। क्ष को इसका ध्यान रखने की या चिंता करने की कोई जरूरत नहीं; हर चीज कार्यान्वित होगी। तुम भी बीज लिए रहते हो: एक बीज पिता से, एक मां से। और वे आते हैं पिछले हजारों वर्षों से, क्योंकि -पिता का बीज उन्हें दिया गया था उनके पिता और मां दवारा। इस भांति प्रकति तममें प्रविष्ट हुई है। तुम्हारा शरीर आया है प्रकृति से, तुम आए हो कहीं और से। इस कहीं और का मतलब है, परमात्मा। तुम एक मिलन-बिंद हो शरीर और चेतना के। लेकिन शरीर बहत-बहत शक्तिशाली है और जब तक तुम इस विषय में कुछ करो नहीं, तुम इसकी शक्ति के भीतर रहोगे, इसके अधिकार में रहोगे। योग एक ढंग है इससे बाहर आने का। योग ढंग है शरीर द्वारा आविष्ट न होने का और फिर से मालिक होने का। अन्यथा तुम तो गुलाम बने रहोगे। अविद्या है गुलामी, सम्मोहन की वह गुलामी, जो प्रकृति ने तुम्हें दे दी है। योग इस गुलामी के पार हो जाना और मालिक हो जाना है। अब सूत्रों को समझने की कोशिश करें। सूत्र का अर्थ हआ बीज। इसे बहत-बहत ढंग से समझ लेना है, तभी यह तुममें समझ का वृक्ष बनेगा। सूत्र एक बहुत ही संक्षिप्त संदेश होता है। उन दिनों इसे ऐसा ही होना था, क्योंकि जब पतंजलि ने रचा योग-सूत्रों को तो कोई लिखाई न थी। उन्हें स्मरण रखना होता था। उन दिनों तुम बड़ी-बड़ी किताबें न लिख सकते थे, बस सूत्र ही लिखते। सूत्र होता है बीज जैसी चीज, जिसे आसानी से स्मरण रखा जा सके। और हजारों वर्षों तक सूत्रों को स्मरण रखा गया शिष्यों द्वारा, और फिर उनके शिष्यों द्वारा। जब इन्हें लिखा गया उसके हजारों साल बाद ही ग्रंथ रचना का अस्तित्व बना। सूत्र संकेतकारी होना चाहिए; तुम बहुत सारे शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकते; तुम्हें अल्पतम का, कम से कम शब्दों का प्रयोग करना होता है। तो जब कभी तुम किसी सूत्र को समझना चाहो तो तुम्हें उसे बढ़ाना पड़ता है। तुम्हें उसकी व्याख्याओं में उतरने के लिए सूक्ष्मदर्शक यंत्र का प्रयोग करना होता है।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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